मंगलवार, 26 मई 2015

मुलायम, अमर, सुब्रत और चंदा

में राष्ट्रपति पद की दौड़ में शामिल हिलेरी क्लिंटन के फाउंडेशन को भारतीय राजनीतिज्ञ अमर सिंह से मिले भारी-भरकम चंदे पर जो भी बवाल मचा हो, लेकिन अमर सिंह की सपा में वापसी पर छाया तो पड़ ही गई है. हालांकि, पिछले दिनों समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं प्रदेश सरकार के वरिष्ठ मंत्री शिवपाल यादव ने कहा कि सपा में वापसी के बारे में अमर सिंह ही मीडिया को बताएंगे. इसमें यह इशारा भी निहित था कि क्लिंटन फाउंडेशन को अमर सिंह द्वारा दिए गए 50 लाख डॉलर के चंदे के बारे में भी वही मीडिया को बताएं. इस बात पर लोग हैरत ज़रूर जता रहे हैं कि अमर सिंह के हलफनामे में उनकी कुल संपत्ति 50 लाख डॉलर है, तो उन्होंने क्लिंटन फाउंडेशन को उतनी ही रकम कैसे दे दी? आ़िखर क्या है इस चंदे का सच? पढ़िए इस खास रिपोर्ट में…
mulayam-amar-subratक्लिंटन फाउंडेशन को अमर सिंह का लाखों डॉलर का चंदा सुर्खियों में आया, लेकिन न्यूयॉर्क पोस्ट ने इस प्रकरण में समाजवादी पार्टी और सुब्रत राय सहारा के कोरम की तऱफ ध्यान नहीं दिया. क्लिंटन फाउंडेशन को जिस समय चंदा दिए जाने की बात कही गई है, वह समय अमर-मुलायम-सुब्रत के कोरम के बगैर पूरा ही नहीं होता. मुलायम सिंह की तऱफ से क्लिंटन को सारे सत्ता सुख देने और सहारा की तऱफ से क्लिंटन को ऐश्वर्य का भोग चढ़ाने के कृत्य आम लोगों ने देखे हैं. हम केवल उन्हें फिर से सामने रख रहे हैं और दृश्यों को जोड़ दे रहे हैं. अंतरराष्ट्रीय राजनीति समझने वाले लोग इसे हिलेरी क्लिंटन के राष्ट्रपति पद की दौड़ में शामिल होने की प्रतिरोधी सियासत से जोड़कर देख रहे हैं, तो वहीं घरेलू राजनीति की नब्ज समझने वाले लोग अमर सिंह के समाजवादी पार्टी में वापस होने के ऐन समय पर हुई तिकड़मी सियासत से जोड़कर. जिस तरह डेमोक्रैट पार्टी में रहते हुए बराक ओबामा नहीं चाहते कि हिलेरी क्लिंटन अमेरिका की राष्ट्रपति बनें, उसी तरह समाजवादी पार्टी में रहते हुए प्रो. राम गोपाल यादव नहीं चाहते कि अमर सिंह फिर से पार्टी में वापस आए. यह चंदा-दृश्य बहुत सोच-समझ कर योजनाबद्ध तरीके से सामने लाया गया है, जबकि है यह बहुत पुराना मामला.
बहरहाल, अभी हम क्लिंटन फाउंडेशन को अमर सिंह द्वारा चंदा दिए जाने का प्रकरण देखते चलें, अन्य जुड़े हुए तथ्य इसके बाद देखेंगे. न्यूयॉर्क पोस्ट ने क्लिंटन कैश नामक एक किताब के हवाले से लिखा है कि अमर सिंह एवं अन्य कुछ संगठनों ने वर्ष 2008 में क्लिंटन फाउंडेशन को लाखों डॉलर का चंदा दिया था. यह चंदा 10 लाख डॉलर से 50 लाख डॉलर के बीच था. न्यूयॉर्क पोस्ट ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि अमर सिंह ने 2008 में उस संवेदनशील वक्त पर चंदा दिया था, जब अमेरिकी कांग्रेस में ऐतिहासिक भारत-अमेरिका असैनिक परमाणु करार पर मुहर लगने के बारे में चर्चा हुई थी. सीनेट इंडिया कॉकस की तत्कालीन सह-अध्यक्ष एवं प्रतिष्ठित सीनेटर हिलेरी क्लिंटन ने विधेयक का समर्थन किया था, जिसे कांग्रेस ने बहुमत से पारित किया था. क्लिंटन कैश किताब के लेखक पीटर श्वाइजर ने सवाल उठाया है कि क्या अमर सिंह परमाणु करार के लिए जोर देते हुए भारत में अन्य प्रभावशाली हितों के वाहक तो नहीं थे? श्वाइजर ने लिखा है, अगर यह सच है, तो इसका मतलब है कि अमर सिंह ने अपने पूरे नेट-वर्थ का 20 से 100 प्रतिशत के बीच क्लिंटन फाउंडेशन को दिया था. इस मसले पर अमर सिंह ने किसी तरह की गड़बड़ी की बात खारिज करते हुए कहा है, मैं अनुमानों और अटकलों पर टिप्पणी नहीं करना चाहता. मैं क़ानून का पालन करने वाला नागरिक हूं, जिसने देश के किसी क़ानून का उल्लंघन नहीं किया. मैं हाई प्रोफाइल व्यक्ति हूं, जिसकी कलकत्ता एवं इलाहाबाद उच्च न्यायालयों, कानपुर सत्र न्यायालय, उत्तर प्रदेश पुलिस और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने क़ानूनी तथा प्रशासनिक तरीके से जांच-पड़ताल की, लेकिन कोई मेरे ़िखला़फ कुछ साबित नहीं कर सका. क्लिंटन फाउंडेशन एवं उसके प्रचार विभाग ने भी कुछ ऐसा ही कहा और गड़बड़ी की बात पूरी तरह खारिज की, लेकिन चंदा पाने की बात से इंकार नहीं किया. फाउंडेशन ने कहा कि उसके सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए चंदा लेने में पूरी पारदर्शिता बरती गई.
अमेरिका में राष्ट्रपति पद की दौड़ में शामिल हिलेरी क्लिंटन के फाउंडेशन को भारतीय राजनीतिज्ञ अमर सिंह से मिले भारी-भरकम चंदे पर जो भी बवाल मचा हो, लेकिन अमर सिंह की सपा में वापसी पर छाया तो पड़ ही गई है. हालांकि, पिछले दिनों समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं प्रदेश सरकार के वरिष्ठ मंत्री शिवपाल यादव ने कहा कि सपा में वापसी के बारे में अमर सिंह ही मीडिया को बताएंगे. इसमें यह इशारा भी निहित था कि क्लिंटन फाउंडेशन को अमर सिंह द्वारा दिए गए 50 लाख डॉलर के चंदे के बारे में भी वही मीडिया को बताएं. इस बात पर लोग हैरत ज़रूर जता रहे हैं कि अमर सिंह के हलफनामे में उनकी कुल संपत्ति 50 लाख डॉलर है, तो उन्होंने क्लिंटन फाउंडेशन को उतनी ही रकम कैसे दे दी? क्या उन्होंने अपनी पूरी संपत्ति क्लिंटन फाउंडेशन के नाम लिख दी या फिर चंदे की रकम का किसी अन्य स्रोत से जुगाड़ किया? अमर सिंह की इस जुगाड़ टेक्नोलॉजी में कई अन्य तथ्य जुड़े होने की संभावनाएं बनती और दिखती हैं.
कौन भूल सकता है कि उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह के मुख्यमंत्री रहते जब बिल क्लिंटन लखनऊ आए थे, तो अमर सिंह ने उनकी कैसी अगवानी की थी. उसके बाद अमर सिंह ने वाशिंगटन जाकर हिलेरी क्लिंटन से मुलाकात भी की थी. क्लिंटन फाउंडेशन ग़रीबी मिटाने, एड्स एवं कई दूसरे सामाजिक सरोकारों से जुड़े कार्यक्रम चलाता है. तब 2005 का सितंबर महीना था. उत्तर प्रदेश विकास परिषद ने क्लिंटन को लखनऊ आमंत्रित किया था. सात सितंबर को बिल क्लिंटन एक दिन के लिए लखनऊ आए थे, लेकिन उनके लिए की गई व्यवस्था ऐसी थी, जैसे महीनों के लिए की गई हो. क्लिंटन एवं उनके साथ आए अधिकारियों को लखनऊ के सबसे महंगे पंच सितारा होटल ताज में ठहराया गया था. होटल की दूसरी मंजिल बाकायदा सील कर दी गई थी. 18 कमरे उनके लिए आरक्षित थे. इसके अलावा तीन अन्य स्थान भी सुरक्षित रखे गए थे. क्लिंटन के कमरे में कई हज़ार वाट का संगीत यंत्र लगाया गया था. क्लिंटन ने रात्रि भोज मुख्यमंत्री निवास पर किया था. इसके लिए दिल्ली के कारीगरों ने प्लाइवुड का जो विशेष पंडाल बनाया था, वह आंधी, पानी एवं भूकंप प्रतिरोधी होने के साथ-साथ बुलेटप्रूफ भी था. इस पर उस समय एक करोड़ रुपये से अधिक खर्च हुआ था.
10 हज़ार वर्ग फुट में बने पंडाल में हर घंटे सौ यूनिट बिजली खर्च हुई. इसे 7.5 किलोवाट के 30 बड़े वातानुकूलन संयंत्रों द्वारा ठंडा किया जा रहा था. 1,000 केवी के दो ट्रांसफार्मर मुख्यमंत्री आवास के पास अलग से लगाए गए थे. इसके लिए छह लाख रुपये का भुगतान किया गया था. इसके अलावा स्वत: चालू और बंद होने वाले ऑटोमेटिक जेनरेटर भी लगाए गए थे. क्लिंटन की सुरक्षा के लिए ताज होटल में दो पुलिस अधीक्षक, तीन अपर पुलिस अधीक्षक, छह उपाधीक्षक, सात थानाध्यक्ष, 175 सिपाही और एक प्लाटून पीएसी तैनात थी. इसके अलावा अमौसी हवाई अड्डे पर दो अतिरिक्त अधीक्षक, तीन उपाधीक्षक, पांच थाना प्रभारी, 75 सिपाही और एक कंपनी पीएसी तैनात थी. मुख्यमंत्री आवास पर दो पुलिस उप-महानिरीक्षक, दो अतिरिक्त अधीक्षक, पांच उपाधीक्षक, चार थाना प्रभारी, 26 उपनिरीक्षक, 84 सिपाही और एक कंपनी पीएसी तैनात थी. लखनऊ में पूर्व में तैनात रहे चार मजिस्ट्रेटों को भी इसके लिए विशेष रूप से बुला लिया गया था.
क्लिंटन को खाने-पीने के लिए जो व्यंजन प्रस्तुत किए गए, उसके लिए मुंबई, दिल्ली एवं जयपुर के उन होटलों से परामर्श किया गया था, जहां क्लिंटन अपनी पिछली यात्राओं के दौरान ठहरे थे. आते ही उन्हें नींबू, चांदी के वर्क एवं जड़ी-बूटियों से निर्मित लखनऊ का विशेष शरबत मुफर्रा नवाब और इटली से मंगाई गई एले-बीन निर्मित कॉफी पेश की गई थी. नाश्ते के लिए टर्किश सैंडविच, भारतीय अमूल पनीर, इटली के शेदार, गौडा एवं आइडम्स पनीर और फ्रांस के मोजरेला पनीर का इंतजाम था. साथ ही केला और न्यूजीलैंड से मंगाया गया कीवी फल था. चॉकलेट की ब्राउनी प्लैटरी भी उन्होंने चखी थी. उनके कमरों के फ्रिज में ठंडी डाइट कोक भी भरी रही. उनके भोजन के लिए जो अवधी व्यंजन तैयार किए गए, उनमें चिकन काठी, रोल, चिकन टिक्का, मुर्ग अवधी, कोरमा, मुर्ग लबाबदार, माही टिक्का, पनीर टिक्का, काकोरी कबाब, घुलावटी कबाब, मुर्ग शाही कोरमा वगैरह प्रमुख रूप से शामिल थे. मछली, उबली सब्जियां, कॉर्न और चिकन के विदेशी व्यंजन भी थे. भोजन के बाद मीठे के नाम पर मुजफ्फर सेवईं, शाही टुकड़ा और कई तरह की आइसक्रीमों की व्यवस्था थी. होटल ताज के शराबखाने ने भी इस अवसर पर विशेष तैयारी की थी.
रात्रि भोज के बाद नाच-गाने के लिए अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त श्यामक डावर नृत्य दल बुलाया गया था. विडंबना देखिए, उसके छह दिन पहले ही एक सितंबर को तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी लखनऊ आए थे, लेकिन कोई जान भी नहीं सका कि मनमोहन कब आए और कब चले गए. लेकिन, जिन सड़कों से क्लिंटन को गुज़रना था, उनके डिवाइडर और पेवर पर नया रंग-रोगन कर गमले रखे गए थे. बिजली के लट्टुओं को बदल कर रिफ्लेक्टर लगाए गए. सैकड़ों खम्बों के रंग बदले गए. ताज होटल के सामने वाली दीवार पर धौलपुरी पत्थर लगाए गए और सफाई तो स्वर्गिक थी. क्लिंटन के स्वागत में हुए रात्रि भोज में 150 विशिष्ट अतिथि उपस्थित थे. इनमें मंत्रिमंडल के कुछ सदस्य, मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव, अमिताभ बच्चन एवं सुब्रत राय सहारा का पूरा परिवार, अजीत सिंह एवं बंगारप्पा जैसे नेता, अनिल अंबानी, अमर सिंह समेत उत्तर प्रदेश विकास परिषद के सभी सदस्य, कुछ अ़खबार मालिक और चुनिंदा नौकरशाह शामिल थे. मुलायम सिंह और क्लिंटन के बीच दुभाषिए का काम अमिताभ बच्चन ने किया. इस अभूतपूर्व स्वागत का अर्थ क्या था, इसकी पहेली सुलझाने में लोगों को अधिक वक्त नहीं लगा था. परमाणु करार पर बाहर-बाहर के विरोध और अंदर-अंदर के प्रेम दृश्य लोगों को सारे निहितार्थ समझा रहे थे.
इस यात्रा की खूबी यह थी कि क्लिंटन अमेरिका से सीधे लखनऊ पहुंचे थे. तब किसी ने चुटकी भी ली थी कि ग्लोबल कंपनी के डायरेक्टर के रूप में क्लिंटन सीधे लखनऊ आ रहे हैं. क्लिंटन के स्वागत में मुख्यमंत्री मुलायम सिंह, सुब्रत राय सहारा, राज्य के तत्कालीन ब्रैंड एम्बेसडर अमिताभ बच्चन, कुमार मंगलम बिड़ला, मुकेश अंबानी, आदी गोदरेज, रामदास पै, केवी कामत, एस बंगारप्पा, डॉ. प्रताप रेड्डी और नंदन नीलेकणी के साथ राज्य की तत्कालीन मुख्य सचिव नीरा यादव की मौजूदगी उल्लेखनीय थी. फिल्मी हस्तियों में सुभाष गई, राजकुमार संतोषी, करण जौहर, गोविंद निहलानी, मुजफ्फर अली एवं कमलेश पांडे का नाम तो है ही, रानी मुखर्जी, करीना कपूर, श्रीदेवी एवं ऐश्वर्या राय जैसी खूबसूरत हस्तियां खास तौर पर उल्लेखनीय थीं. जाहिर है, इसमें अमर सिंह और सुब्रत राय सहारा की केंद्रीय भूमिका रही होगी. क्लिंटन की उस भव्य स्वागत गाथा को फिर से लिखने का मक़सद स़िर्फ इतना है कि चंदा देने के पीछे की वजहों और स्वार्थों से संबद्ध सारे चेहरे सा़फ-सा़फ दिखने लग जाएं.

चंदा देने वालों में स़िर्फ अमर नहीं
क्लिंटन फाउंडेशन को चंदा देने वालों में अमर सिंह के अलावा 900 अत्यंत प्रमुख हस्तियां शामिल हैं. इनमें अमेरिकी-भारतीय एनआरआई, भारतीय, एनजीओ और अमेरिकी-भारतीय कंपनियां शुमार हैं. 250 डॉलर तक का चंदा देने वालों में 2,82,759 लोगों के नाम शामिल हैं. क्लिंटन फाउंडेशन को 251 डॉलर से एक हज़ार डॉलर तक का चंदा देने वालों में 650 भारतीयों के नाम हैं. एक हज़ार एक डॉलर से लेकर पांच हज़ार डॉलर तक का चंदा देने वालों में 150 भारतीयों के नाम हैं. 10 लाख से लेकर 50 लाख डॉलर तक का चंदा देने वालों में अमर सिंह के अलावा इन्फो ग्रुप के चेयरमैन विन गुप्ता, सेवेन हिल्स ग्रुप के स्वामी डेव कटरागड्डा और उद्योगपति लक्ष्मी एन. मित्तल के नाम शामिल हैं. पांच लाख से लेकर 10 लाख डॉलर तक का चंदा देने वालों में चॉपर ट्रेडिंग के राज फर्नांडो और एकता फाउंडेशन की अमृता एवं अशोक महबूबानी के नाम हैं. ढाई लाख से लेकर पांच लाख डॉलर तक का चंदा देने वाले भारतीयों में उद्योगपति अजित गुलाबचंद और तत्कालीन प्रमुख होटल व्यवसायी ललित सूरी (अब मरहूम) के नाम शामिल हैं. एक लाख डॉलर से लेकर ढाई लाख डॉलर तक का चंदा देने वालों में फ्रैंक इस्लाम और उनकी पत्नी डेब्बी ड्रीज़मेन के साथ-साथ अमेरिकन इंडियन फाउंडेशन की अध्यक्ष एवं शाह कैपिटल पार्टनर्स की सीएफओ लता कृष्णन और रिलाएंस यूरोप लिमिटेड शामिल हैं. क्लिंटन फाउंडेशन को 50 हज़ार डॉलर से लेकर एक लाख डॉलर तक का चंदा देने वालों में हिंदुजा फाउंडेशन और जेनरल अटलांटिक के स्पेशल एडवाइजर दिनयर देवित्रे समेत दस लोगों के नाम शामिल हैं. 25 हज़ार से लेकर 50 हज़ार डॉलर तक का चंदा देने वालों में प्रमुख उद्योगपति आदि गोदरेज की पत्नी परमेश्वर ए. गोदरेज और देशपांडे फाउंडेशन के डी देशपांडे समेत 13 नाम शामिल हैं. 10 हज़ार से लेकर 25 हज़ार डॉलर तक का चंदा देने वालों में मेकेंजडी के मैनेजिंग डायरेक्टर रजत गुप्ता, फिल्मकार एम नाइट श्यामलन, तकनीकी विशेषज्ञ रणवीर त्रेहान समेत 41 लोगों के नाम हैं. पांच हज़ार से लेकर 10 हज़ार डॉलर तक का चंदा देने वालों में संत निरंकारी मिशन, वाधवानी फाउंडेशन के रोमेश वाधवानी समेत 32 नाम शामिल हैं.

अखिलेश का क्लिंटन प्रेम
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन जब जुलाई, 2014 में लखनऊ आए, तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी उनके स्वागत में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. अमौसी हवाई अड्डे पर अखिलेश यादव क्लिंटन के स्वागत में खुद मौजूद थे. क्लिंटन लखनऊ में केवल पांच घंटे रहे. इतनी देर के लिए उनकी सुरक्षा व्यवस्था में दो पुलिस अधीक्षक, आठ उपाधीक्षक, 10 थानाध्यक्ष, सात निरीक्षक, 250 कांस्टेबल और पीएसी की 10 कंपनियों की तैनाती की गई थी. क्लिंटन को जिस रास्ते से ग़ुजरना था, उसकी सा़फ-सफाई, रंग-रोगन और प्रशासनिक तामाझाम तो इसके अतिरिक्त हैं.

सपा और अमर ने मिलकर की कांग्रेस की मदद
अब यह सा़फ हो गया है कि अमर सिंह एवं समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस नीत संप्रग सरकार को उबारने और कॉरपोरेट हितों को संरक्षण दिलाने की नीयत से क्लिंटन फाउंडेशन को चंदा देकर हिलेरी क्लिंटन से मदद ली थी. यह बात अब खुल गई है कि सीनेटर रहते हुए बराक ओबामा और हिलेरी क्लिंटन ने भारत के लिए सीनेट में लॉबिंग की. इसमें अमेरिकी-भारतीय उद्योगपति संत सिंह चटवाल सक्रिय थे. चटवाल की भूमिका के कारण ही यूपीए सरकार ने उन्हें पद्म पुरस्कार से नवाजने की कोशिश की थी. अमेरिका में हुई लॉबिंग में एक तऱफ जेनेरिक इलेक्ट्रिक और वेस्टिंग हाउस इलेक्ट्रिक जैसे अमेरिकी कॉरपोरेट घराने के, तो दूसरी तऱफ अनिल अंबानी की कंपनी एडीएजी के हित साधे जा रहे थे.

तब अमर के बचाव में कूद पड़े थे मुलायम
वर्ष 2008-09 में जब क्लिंटन फाउंडेशन को चंदा देने का मसला उछला था, तब उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी को हराकर (विधानसभा चुनाव 2007) बहुजन समाज पार्टी सत्ता पर काबिज हो चुकी थी. प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने क्लिंटन फाउंडेशन को अमर सिंह द्वारा भारी रकम बतौर चंदा दिए जाने की सीबीआई से जांच कराने की सिफारिश की थी. इस सिफारिश से संबंधित पत्र केंद्र सरकार को औपचारिक तौर पर भेज भी दिया गया था, लेकिन उसके बाद जांच का क्या हुआ, कुछ पता नहीं चला. जबकि बहुजन समाज पार्टी ने अमर सिंह के ़िखला़फ फेमा के तहत मामला दर्ज कराने की मांग की थी और आरोप लगाया था कि क्लिंटन फाउंडेशन को चंदा देना विदेशी मुद्रा नियामक क़ानून का उल्लंघन है. तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती की उस सिफारिश पर मुलायम सिंह ने तीखी प्रतिक्रिया जताई थी और अमर सिंह का बचाव किया था. मुलायम सिंह ने कहा था कि मायावती खुद बहुत बड़ी भ्रष्ट हैं, वह क्या दूसरों की जांच कराएंगी. उन्हें तो नैतिक अधिकार ही नहीं है बोलने का.

नाम वालों से अधिक हैं अनाम
क्लिंटन फाउंडेशन को चंदा देने वाली 900 वीवीआईपी हस्तियों के अलावा हज़ारों लोगों के नाम सामने आए हैं, लेकिन ऐसे लोगों की संख्या भी काफी है, जिनका नाम सूची में नहीं है, लेकिन उनका चंदा क्लिंटन फाउंडेशन को प्राप्त हुआ है. फाउंडेशन को चंदा देने वाली अनाम हस्तियों में देश के कई नामी पूंजीपति, नेता, व्यापारी एवं धनाढ्य एनजीओ स्वामी शामिल हैं, जिनके अमेरिका में बड़े-बड़े कारोबार हैं, होटल हैं और अनेक स्वार्थ संबद्ध हैं. इन अनाम हस्तियों में कौन नेता है, कौन पूंजीपति है, कौन अर्थ के गलियारे का बिचौलिया है, सारी जानकारी मौजूद है. लेकिन उनके नाम दस्तावेज़ों पर नहीं हैं, इसलिए नाम प्रकाशित करने में क़ानूनी बाधा है.

केंद्र से लेकर यूपी तक चलती थी चटवाल की
क्लिंटन फाउंडेशन के चार ट्रस्टियों में दो भारतीय हैं. इनमें संत सिंह चटवाल का नाम अव्वल है. चटवाल अमेरिकी सत्ता गलियारे के साथ-साथ भारत और खास तौर पर, उत्तर प्रदेश के सत्ता गलियारे में भी काफी सक्रिय रहे हैं. केंद्र में कांग्रेस शासन के सत्ता अलमबरदारों से चटवाल की काफी निकटता रही है और उत्तर प्रदेश में भी वह तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव, सपा के तत्कालीन महासचिव अमर सिंह एवं तत्कालीन पूंजीपति सुब्रत राय सहारा के नज़दीक रहे हैं. स्वनामधन्य संत सिंह चटवाल पर अमेरिका में वित्तीय अपराध और न्यायिक प्रक्रिया में बाधा डालने जैसे गंभीर आरोप हैं. भारतीय मूल के अमेरिकी होटल उद्योगपति संत सिंह चटवाल न्यूयॉर्क की अदालत के सामने ग़ैर-क़ानूनी तरीकों से राजनीतिक चंदा देने का जुर्म स्वीकार कर चुके हैं. उनका रिकॉर्डेड वक्तव्य है कि ग़ैर-क़ानूनी तरीकों से दिए गए पैसों से ही सत्ता तक पहुंच बनती है. सिस्टम में घुसने और उसे खरीदने का यही एकमात्र रास्ता है. चटवाल अमेरिका में कई रेस्तरां और मोटेल चेन के मालिक हैं और हाल तक न्यूयॉर्क के हैंपशायर होटल के मैनेजमेंट बोर्ड के अध्यक्ष थे.न्यूयॉर्क की एक अदालत में चटवाल ने स्वीकार किया था कि उन्होंने 2007 से 2011 के दौरान अपनी जेब से पैसा देकर दूसरे लोगों से चंदा दिलवाया और तीन राजनीतिक उम्मीदवारों के लिए एक लाख अस्सी हज़ार डॉलर तक का चंदा दिया. सरकारी पक्ष का कहना था कि चटवाल ने अपने कर्मचारियों और होटल में काम करने वाले ठेकेदारों के ज़रिये चंदा दिया, जिससे वह प्रशासन के अधिकारियों और कांग्रेस के सदस्यों तक अपनी पहुंच बना सकें. उन पर गवाहों को खरीदने की कोशिश करने जैसे गंभीर आरोप भी थे. चटवाल ने 2008 के राष्ट्रपति चुनाव के दौरान डेमोक्रैटिक पार्टी की उम्मीदवारी के लिए बराक ओबामा के ख़िला़फ लड़ रही हिलेरी क्लिंटन के लिए एक लाख डॉलर का चंदा जुटाया था. चटवाल की इस स्वीकारोक्ति के बाद तो राजनीतिक हस्तियों में चंदा लौटाने की होड़ लग गई थी. क्लिंटन फाउंडेशन के विवादास्पद ट्रस्टियों में एक और भारतीय का नाम है. वह हैं, विनोद गुप्ता. अमेरिका में डाटाबेस फर्म इन्फोयूएसए के संस्थापक एवं अध्यक्ष विनोद गुप्ता क्लिंटन फाउंडेशन के ट्रस्टी और बिल क्लिंटन के प्रमुख वित्तीय सलाहकार रहे हैं. वर्ष 2008 में उन पर धोखाधड़ी और वित्तीय अनियमितता के गंभीर आरोप लगे थे. उन पर आरोप था कि कॉरपोरेट फंड के क़रीब एक करोड़ डॉलर की धनराशि उन्होंने चार्टर विमान से यात्रा करने, निजी क्रेडिट काड्‌र्स, आलीशान नौका और 20 आलीशान गाड़ियां खरीदने में खर्च कर दी. विनोद गुप्ता ने इन खर्चों में से 40 लाख डॉलर की रकम सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन (एसईसी) के ज़रिये धोखाधड़ी करके समायोजित करा दी. गुप्ता ने बिल क्लिंटन को भी क़रीब 30 लाख डॉलर दिए थे. फाउंडेशन के दो अन्य ट्रस्टियों विक्टर दहडालेह और रोनाल्डो गोंजालेज बन्सटर पर भी गंभीर वित्तीय अपराध के आरोप रहे हैं.
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मंगलवार, 6 जनवरी 2015

नटवर सिंह की किताब में सोनिया का सच !

नटवर सिंह की किताब में सोनिया का सच !


अपने घर के अध्ययन कक्ष में नटवर सिंह
सोनिया गांधी को लेकर हदें लांघने और किस्से सुनाने की हिमाकत कोई नहीं कर सकता. पी.वी. नरसिंह राव को किस्सागोई का सहारा लेना पड़ा और फिर भी उनका उपन्यास वहीं खत्म हो गया जहां उनके शागिर्द ने प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली. अर्जुन सिंह के संस्मरण मरणोपरांत छपे और उससे पहले ही उनके परिवारवालों ने देश के प्रथम परिवार पर चोट कम-से-कम करने के लिए उसमें उपयुक्त फेरबदल कर दिया था. 83 वर्ष के कुंवर नटवर सिंह भी बगावत करेंगे इस पर किसी को यकीन नहीं हो सकता. नेहरूवाद को तमगे की तरह सीने से चिपकाए नटवर सिंह ने 31 साल भारतीय विदेश सेवा और 24 साल कांग्रेस में बिताए हैं और आज भी अपनी एक जमाने की दोस्त सोनिया को बड़ी शिद्दत से याद करते हैं.

वे बताते हैं कि कैसे सोनिया के साथ किताबों (सोनिया ने 1988 में उन्हें गैब्रिएल गार्सिया मार्केज की पुस्तक वन हंडे्रड ईयर्स ऑफ सॉलिट्यूड पढऩे को कहा), लोगों (सोनिया ने उन्हें ऐसी बातें बताईं जिन्हें प्रियंका और राहुल को भी नहीं बताया था) पर चर्चा करते हुए घंटों बिताए और राजनैतिक गपशप भी की (उन्होंने मोनिका लेविंस्की के साथ बिल क्लिंटन के प्रेम प्रसंग पर भी बात की थी). नटवर सिंह कहते हैं, “वे राजसी भोजों के दौरान भी मुझे कागज पर चुटकुले लिखकर भेजा करती थीं.” नटवर सिंह ने घंटों सोनिया के भाषण तैयार करने में उनके साथ बिताए, उनके साथ विदेश यात्राएं कीं और कई संवेदनशील काम भी किए जैसे प्रधानमंत्री पद के लिए उनकी पसंद मनमोहन सिंह के नाम पर कांग्रेस के नेताओं को राजी कराया.

इसलिए जब नटवर सिंह ने अपनी नई किताब वन लाइफ इज नॉट इनफ में सब कुछ कह डालने का फैसला किया तो आप समझ सकते हैं कि सोनिया क्यों बेचैन हैं और जैसा कि नटवर सिंह बार-बार कहते हैं, क्यों सोनिया ने अपनी बेटी प्रियंका के साथ उनके जोरबाग स्थित निवास पर जाकर यह किताब न छपवाने की चिरौरी की. क्या सोनिया की नजर में यह किताब अपनी तरफ ध्यान खींचने की कोशिश है? या अनाज के बदले तेल घोटाले में वोल्कर रिपोर्ट आने के बाद अकेला छोड़ दिए जाने का प्रतिशोध है?

सोनिया के विरोधियों के लिए तो यह बहुत गरम मसाला है. नटवर ने अपनी किताब में एक से एक चौंकाने वाले भेद खोले हैं. वे लिखते हैं कि सोनिया ने प्रधानमंत्री बनने से इसलिए इनकार किया क्योंकि राहुल ने चेताया था कि अगर ऐसा किया तो “अपनी मां को रोकने के लिए कुछ भी कर गुजरेंगे.” नटवर ने इस किताब में लिखा है कि राहुल ने अपनी मां को फैसला बदलने के लिए 24 घंटे दिए थे. इस चेतावनी ने उन्हें रुला दिया. पिछले चुनाव में प्रधानमंत्री पद के दावेदार बताए गए राहुल के मन में सत्ता को लेकर दुविधा है जो कांग्रेस के टूटे मनोबल के लिए अच्छा संकेत नहीं है. इससे पार्टी के तुरुप के तौर पर राहुल की साख को बट्टा ही लगेगा.

नटवर सिंह यह भी खुलासा करते हैं कि उनके मंत्रालय सहित लगभग हर बड़े मंत्रालय में सोनिया का कोई न कोई भेदिया था. इंडिया टुडे  के साथ बातचीत में नटवर सिंह ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रह चुके संजय बारु ने अपनी किताब, द एक्सीडेंटल प्राइममिनिस्टररू द मेकिंग ऐंड अनमेकिंग ऑफ मनमोहन सिंह में सही लिखा है कि सभी फाइलें सोनिया की मंजूरी के लिए भेजी जाती थीं. नटवर सिंह ने बताया है कि कैसे सोनिया नरसिंह राव और मनमोहन सिंह, दोनों की नींद हराम रखती थीं. राव ने तो उनसे शिकायत भी की थी कि सोनिया की बेरुखी का असर उनकी सेहत पर पड़ रहा है. 2004 में मनमोहन सिंह ने बैंकॉक में एक होटल में नटवर को अपने सुइट में बुलाया और बताया कि वे कितने एकाकी हैं. तब उन्हें प्रधानमंत्री बने एक महीना हुआ था.

नटवर सिंह की यह किताब जितनी आत्मकथा है उतना ही देश के अब तक के एक सर्वशक्तिमान नेता का चित्रण भी है. नटवर सिंह ने विस्तार से बताया है कि किस तरह सहमी, घबराई, शर्मिली सोनिया एक महत्वाकांक्षी, अधिनायकवादी और कड़क नेता बनीं. वे कभी न कुछ भूलती हैं और न किसी को माफ  करती हैं. नटवर सिंह ने उन्हें सामाजिक-राजनैतिक सुधार विरोधी करार दिया है. नटवर सिंह सोनिया को अहंकारी, तुनकमिजाज सनकी, चालबाज, प्राइमा डॉना कहते हैं और उनके व्यवहार को जहरीला और धूर्त बताते हैं. नटवर की नजर में सोनिया की पसंद-नापसंद बहुत पक्की है. वे किसी गलती को कभी नहीं भूलतीं और न ही आलोचना को माफ करती हैं. चाहे जयराम रमेश ने हद पार की हो या अर्जुन सिंह ने उन्हें अपनी मंडली से घिरा हुआ बताया हो. किसी को बख्शा नहीं जाता, फिर चाहे वह उनकी सास के पुराने सहयोग केनेथ कौंडा ही क्यों न हों. कौंडा ने पुराने दोस्त दिवंगत ललित सूरी के साथ ठहरने की भारी भूल कर दी थी. सूरी से सोनिया की नाराजगी की वजह नटवर कभी नहीं बताएंगे. उनका कहना है कि, “ऐसे लोगों की फेहरिस्त लंबी है जिनकी सोनिया से अनबन हो गई.”

आखिर में सारी बात अनाज के बदले तेल घोटाले तक सिमट जाती है. नटवर सिंह का मानना है कि उन्हें इस मामले में बलि का बकरा बनाया गया. उन्होंने लिखा है कि जस्टिस आर.एस. पाठक समिति ने उन्हें बेगुनाह मान लिया था. लेकिन कैसे यह सच आज तक सामने नहीं आया कि पैसा आखिर किसके पास गया. नटवर सिंह ने बताया है कि संयुक्त राष्ट्र के पूर्व अवर महासचिव वीरेंद्र दयाल 70,000 पन्नों के दस्तावेज लाए थे और उन्हें प्रवर्तन निदेशालय को सौंपा था लेकिन उनका क्या हुआ, कोई नहीं जानता. नटवर ने जब जस्टिस पाठक से पूछा कि उनकी पड़ताल क्यों नहीं की गई तो जवाब मिला, “यह कहानी लंबी है.” नटवर का मानना है कि सोनिया के कहने पर ही सारा दोष उनके सिर मढ़ा गया. वे कहते हैं, “कांग्रेस में उनकी जानकारी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता.”

लेकिन नटवर ने सोनिया पर जो सबसे करारा प्रहार किया है, उसके सामने सब फीका है. वे लिखते हैं कि कोई भारतीय कभी ऐसा आचरण नहीं कर सकता जैसा सोनिया ने किया. उनका कहना है कि सोनिया के मन में एक अभारतीय कोना है जो लोगों को भावनाशून्य होकर अपनी जिंदगी से बाहर फेंकने के उनके अंदाज से जाहिर होता है. नटवर ने इंडिया टुडे को बताया, “वें 19 साल की थीं, तब से भारत में हैं. उन्होंने भारत की हर चीज को घोटकर पी लिया है, कभी कोई गलती नहीं की. फिर भी उनके व्यक्तित्व का 25 प्रतिशत हिस्सा कभी नहीं बदल सकता.”

ये सारी बातें बीजेपी को बहुत सुहाएंगी. वे यह अच्छी तरह जानते हैं, फिर भी चुनौती देते हैं कि कांग्रेस का कोई नेता इसे बीजेपी की साजिश बताकर तो देखे. यह बात और है कि उनके पुत्र जगत सिंह राजस्थान में गोपालगढ़ से बीजेपी विधायक हैं और पुस्तक का समापन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को विदेश नीति पर सलाह देने के लिए नटवर सिंह की मुलाकात से होता है. इस पुस्तक में ऐसा और भी बहुत कुछ है जिससे नेहरू-गांधी परिवार के आलोचकों को मसाला मिलेगा. नेहरू के वफादार नटवर सिंह ने एडविना माउंटबेटन के साथ पहले प्रधानमंत्री के प्रेम प्रसंग के साथ यह भी लिखा है कि नेहरू ने अपने पत्रों में सरकार के कई राज एडबिना को बताए. नटवर सिंह की नजर में राजीव गांधी “सबसे सुंदर इंसान थे लेकिन अपनी मंडली पर भरोसा करने की भूल करते थे जिससे उनके साथी अरुण सिंह ने प्रधानमंत्री को सूचित किए बिना जनरल के. सुंदरजी के साथ मिलकर भारत और पाकिस्तान को युद्ध के कगार पर खड़ा कर दिया था.” नटवर सिंह की आलोचना से सिर्फ इंदिरा गांधी मुक्त हैं.

नटवर सिंह ने उस जगह से उठने का हौसला दिखाया है जहां हर कांग्रेसी बिना सवाल किए सिर झुकाए बैठा रहता है. बेहद कमजोर हो चुकी कांग्रेस में क्या कोई और ऐसा करेगा?

नटवर सिंह की पुस्तक के अंशइंदिरा गांधी ने 1967 के अंतिम दिनों में एक दिन मुझसे कहा, “नटवर कोई और तुम्हें बताए उससे पहले मैं बता रही हूं कि राजीव शादी कर रहे हैं.”
मैंने पूछा, “कौन खुशकिस्मत लड़की है?”
“इटली की है. दोनों कैंब्रिज में मिले थे.”
“शादी कब है?”
इंदिरा गांधी ने कहा, “फरवरी में.”
यह वाकई बहुत बड़ी खबर थी. राजीव उस समय देश में सबसे चहेते कुंवारे नौजवान थे, खूबसूरत और बेहद आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी. दो साल छोटी सोनिया न सिर्फ देश में सबसे प्रसिद्ध राजनैतिक परिवार के सदस्य से विवाह कर रही थीं बल्कि उनका विवाह नेहरू-गांधी परिवार नाम की एक संस्था से हो रहा था. राजीव के बारे में पहले कई बदनाम करने वाली अफवाहें उड़ी थीं लेकिन एडविग आंतोनिया अलबाइना माइनो के साथ राजीव की शादी की खबर बाहर आते ही सारी अफवाहें खुद-ब-खुद शांत हो गई.
25 फरवरी, 1968 को विवाह संपन्न हुआ. श्रीमती गांधी ने अगले दिन हैदराबाद हाउस में राजीव और सोनिया की शादी की दावत दी. सबकी नजरें वधू पर थीं. मुझे आज भी याद है कि सोनिया कितनी नर्वस थीं. तुरिन से नई दिल्ली तक का फासला बहुत बड़ा था. कट्टर रोमन कैथलिक परिवार की बेटी एकदम अजनबी माहौल में आ गई थी. सांस्कृतिक बदलाव का झटका हिला देने वाला था. भारत में सोनिया का न कोई मित्र था, न भारतीय भाषाओं, संस्कृति, रीति-रिवाज, परंपराओं, विरासत, इतिहास और धर्म की कोई समझ या जानकारी थी. वे बस राजीव के लिए अपने प्रेम और अपने लिए राजीव के प्रेम से बंधी थीं. सोनिया ने एक बार मुझे बताया था कि उनके जीवन में कभी कोई और पुरुष नहीं रहा. राजीव और वे शादी करने के लिए सारी दुनिया से लड़ सकते थे. यह जोड़ा सबको लुभा रहा था. सबकी नजरों में चढ़ रहा था. खूबसूरत राजीव और अपनी शालीनता में डूबीं सोनिया.
सोनिया के जीवन को चार चरणों में बांटा जा सकता है. पहला चरण वैवाहिक सुख, प्रेम, मस्ती और दुनिया में मशहूर सास के संरक्षण में सीखने का दौर था. सोनिया सौभाग्य की छांव में शान से चलती रहीं. यह युग 31 अक्तूबर, 1984 को एकाएक समाप्त हो गया जब इंदिरा गांधी की उनके ही सुरक्षार्किमयों ने हत्या कर दी. सोनिया और (इंदिरा के निजी सचिव) आर.के. धवन उनका गोलियों से छलनी लहूलुहान शरीर लेकर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) पहुंचे थे.
दूसरा चरण सिर्फ 7 वर्ष का था. कांग्रेस कार्यकारिणी ने प्रस्ताव पारित कर राजीव को अपनी मां का उत्तराधिकारी चुना. सोनिया उन्हें प्रधानमंत्री बनने से रोकने के लिए उनसे बाघिन की तरह लड़ीं. सोनिया को डर था कि राजीव की भी हत्या हो जाएगी. लेकिन राजीव के सामने उनका कर्तव्य था, निजी जीवन की अहमियत उसके सामने छोटी हो गई. सोनिया के बेपरवाह, बिंदास दिन खत्म हो चुके थे. वे प्रधानमंत्री की पत्नी बनीं और सरकारी यात्राओं पर दुनिया भर में अपने पति के साथ रहीं. अब राजीव और सोनिया जिंदगी को दूर से नहीं देख सकते थे. वे राजनीति की उथल-पुथल के केंद्र में थे. सोनिया कभी बेहद अलग-थलग दिखती थीं. लेकिन वे बहुत गहराई से इस जिंदगी में डूब चुकी थीं. शुरू-शुरू में वे अजनबियों के साथ सहज नहीं हो पाती थीं और बहुत कम बोलती थीं. उस दौर में किसी देश के नेता के साथ उन्हें गर्मजोशी से बात करते शायद ही किसी ने देखा होगा.
इस चरण ने भी अधिक दिन तक उन्हें सुख नहीं दिया. राजीव गांधी भी होनी के शिकार हुए. 21 मई,1991 को सोनिया का संसार लुट गया जब तमिलनाडु के श्रीपेरुंबुदूर में राजीव गांधी की हत्या हो गई. सोनिया का जीवन सूना हो गया.

“शंकरदयाल शर्मा ने कहा, मेरी उम्र प्रधानमंत्री बनने लायक नहीं”
अंतिम संस्कार के बाद राजनैतिक गतिविधियां तेजी से घूमीं. कांग्रेस का अध्यक्ष पद चाहने वालों में अर्जुन सिंह, नारायण दत्त तिवारी, शरद पवार और माधवराव सिंधिया शामिल थे. सोनिया गांधी से जब पद संभालने को कहा गया तो उन्होंने इनकार कर दिया. मैंने उनसे कहा कि अब वे इस पद के लिए अपनी पसंद बता दें. वे जिसे चुनेंगी वही प्रधानमंत्री बनेगा. इतने बड़े फैसले के लिए मैंने उन्हें पी.एन. हक्सर से सलाह लेने का सुझाव दिया. इस बीच, उन्होंने माखनलाल फोतेदार सहित कई लोगों से बात की.
अगले दिन सोनिया ने मुझसे हक्सर को 10 जनपथ लाने को कहा. हक्सर ने सलाह दी कि उपराष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा के सामने पार्टी अध्यक्ष बनने की पेशकश रखी जाए. उनका सुझाव था कि अरुणा आसफ अली और मैं उपराष्ट्रपति से बात करूं. देश में अरुणा आसफ अली का कद बहुत बड़ा था. उन्होंने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में बड़ी भूमिका निभाई थी. वे शंकरदयाल शर्मा को बहुत अच्छी तरह जानती थीं. मैं भी दशकों से शंकरदयाल जी से परिचित था. उनसे मेरी पहली मुलाकात तब हुई थी जब वे भोपाल में मुख्यमंत्री थे. हम दोनों के बीच नाता कैंब्रिज विश्वविद्यालय से भी जुड़ता था. दोनों ही उससे जुड़े रहे हैं.
अरुणा आसफ अली ने सोनिया का संदेश उपराष्ट्रपति को सुनाया. उन्होंने धीरज से सारी बात सुनी फिर बोले कि सोनिया जी का इतना विश्वास देखकर मैं बहुत सम्मानित और भावुक हूं. उसके बाद जो कुछ सुना उससे अरुणा जी और मैं भौंचक रह गए. उपराष्ट्रपति ने कहा, “भारत के प्रधानमंत्री का काम 24 घंटे का है. मेरी आयु और स्वास्थ्य मुझे देश के सबसे महत्वपूर्ण पद के दायित्वों के साथ न्याय नहीं करने देंगे. आप सोनिया जी को बता दें कि इतनी बड़ी जिम्मेदारी न उठा पाने के मेरे कारण क्या है.”
उपराष्ट्रपति का इनकार सुनने के बाद मैंने सोनिया को फिर पी.एन. हक्सर की राय लेने को कहा. उन्होंने सलाह दी कि पी.वी. नरसिंह राव को बुलाया जाए.

“सोनिया को नरसिंह रावबहुत पसंद नहीं थे”
तीसरा चरण 1991 से 1998 तक चला. सोनिया राजीव की स्मृतियों को जिंदा रखकर अकेले में जीती रहीं. उनको राजनीति में लाने की सभी कोशिशें ठुकरा दी गईं. इस बारे में सबसे बुलंद सार्वजनिक अपील तालकटोरा गार्डन में एआइसीसी की बैठक में हुई. जब सोनिया वहां पहुंचीं तो सभी खड़े हो गए और “सोनिया- सोनिया” के नारों से पूरा स्टेडियम गूंज उठा. उनसे मंच पर बैठने का आग्रह किया जा रहा था. 10 मिनट तक तालियां थमने का नाम ही नहीं ले रही थीं. कांग्रेस कार्यकारिणी की एक सदस्य ने उनके पास जाकर अनुरोध किया कि वे मंच पर आएं. लेकिन सोनिया ने साफ-साफ  कह दिया कि अगर यह नुमाइश फौरन बंद न की गई तो वे वहां से उठकर चली जाएंगी.
उस दौरान सोनिया ने राजीव गांधी फाउंडेशन की स्थापना की और राजीव के बारे में दो शानदार संस्करण प्रकाशित किए, जिनमें वे तीन वर्षों में अधिकतर समय व्यस्त रहीं. सोनिया ने नेहरू स्मारक निधि और इंदिरा गांधी स्मारक ट्रस्ट का अध्यक्ष पद भी संभाल लिया और दिल्ली में छह अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किए, जिनमें हमने जाने-माने विद्वानों, कलाकारों और राजनेताओं को आमंत्रित किया. मैंने सुझाव दिया कि सोनिया देश के विभिन्न हिस्सों में ऐसे ही सम्मेलन आयोजित करें. हर शहर में मीडिया, बुद्धिजीवियों और विश्वविद्यालयों का उत्साह देखने लायक था. सोनिया सहज ही मुख्य आकर्षण थीं. वे जितना मीडिया से दूर रहती थीं, मीडिया उतना ही उनका पीछा करता था. सम्मेलनों में वे सिर्फ अपना भाषण पढ़ती थीं और आयोजनों का संचालन मुझे सौंप देती थीं.
सोनिया ने पी.वी. नरसिंह राव को प्रधानमंत्री तो बना दिया था लेकिन उन्हें ज्यादा पसंद नहीं करती थीं. मेरा भी उनसे मनमुटाव हो गया और मैं तिवारी कांग्रेस में शामिल हो गया था पर बाद में हम फिर एक हो गए.
मैंने सुझाव दिया कि वे (राव) मोहम्मद यूनुस से बात करें जो बराबर सोनिया के संपर्क में बने हुए थे. यूनुस दशकों से नेहरू परिवार के अंतरंग मित्र थे. वे स्वाधीनता सेनानी खान अब्दुल गफ्फार खां के भतीजे थे. कुछ दिन बाद रात 9 बजे के बाद नरसिंह राव अपने लाव-लश्कर या पुलिस की गाडिय़ों के बिना यूनुस के घर पहुंचे. चुपचाप हुई इस मुलाकात में मैं भी मौजूद था. इस तरह की मुलाकात के लिए पी.वी. की सहमति से साफ जाहिर था कि वे सोनिया के साथ संबंध सुधारने को उत्सुक थे. पर ऐसा नहीं हुआ. हो सकता है यूनुस के दखल से सोनिया चिढ़ गई हों.

“सोनिया से भाषण के लिए मुलाकातें बहुत कष्टदाई होती थीं”सोनिया गांधी के जीवन का चौथा चरण 14 मार्च, 1998 को शुरू हुआ, जब नई दिल्ली के सिरी फोर्ट सभागार में कांग्रेस कार्यकारिणी की विशेष बैठक में उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी संभाली. वे न अच्छी वक्ता थीं, न संवाद में माहिर थीं जबकि इतने बड़े राजनेता के लिए ये दोनों कौशल अनिवार्य हैं. उनका पहला भाषण तैयार करने में कई घंटे तकलीफ  झेलनी पड़ी. वे प्रियंका के साथ सिरी फोर्ट पहुंचीं और मुझे बुलाकर कहा कि बगल में बैठ जाओ. जयराम रमेश को भी भाषण में कुछ और रंग डालने के लिए बुलवाया गया. हालांकि घबराहट के बावजूद सोनिया पहली बाधा आराम से पार कर गईं.
मुझे याद है कि सोनिया का हर भाषण तैयार करने में कितनी मेहनत और छह से आठ घंटे का समय लगता था. कभी-कभी तो कष्ट भरी भाषण बैठकें आधी रात तक चलती थीं. कभी-कभी वे और मैं अकेले भाषण पर काम करते थे. वे जोर-जोर से भाषण पढ़ती थीं और मैं समय देखता था. फिर उसका हिंदी अनुवाद होता था. हिंदी अनुवाद को फिर रोमन अक्षरों में लिखा जाता था और मोटे अक्षरों में छापा जाता था. यह स्थिति अधिक दिन नहीं चली.
अंग्रेजी में तो वे करीब-करीब निपुण हैं. समस्या हिंदी में है. वे लिखित भाषण देखे बिना हिंदी नहीं बोल सकतीं. मैंने सुझाव दिया कि वे तुलसीदास की एक-दो चौपाई या कबीर के दोहे रट लें और भाषण में बोल दिया करें. उन्होंने हाथ खड़े कर दिए, “मैं तो लिखा हुआ पढऩे में ही परेशान हो जाती हूं. तुम बिना पढ़े बोलने को कह रहे हो? भूल जाओ.”
कांग्रेस के कई बड़े नेताओं ने अपने सुझाव और भाषणों के मसौदे भेजे जो शायद ही कभी इस्तेमाल हुए. भाषण तैयार करने के लिए लंबी बैठकों में जयराम रमेश बिलानागा मौजूद रहा करते थे. कंप्यूटर पर उनकी जादूगरी काम आती थी. वे अच्छे साथी हैं. उनका दिमाग बेहद पैना है पर उनका मजाकिया स्वभाव कभी-कभी परेशानी में डाल देता था. कभी-कभी मैं उनके मजाक का शिकार हो जाता था और सोनिया मेरी बेचैनी का मजा लेती थीं.
तब तक मैं सोनिया से अकसर मिलने लगा था. मैंने उन्हें याद दिलाया कि उनके परिवार के बहुत से अंतरराष्ट्रीय मित्र हैं जो राजीव की मृत्यु के बाद से उपेक्षित हैं. इन संबंधों को फिर से जागृत करना चाहिए और उनसे संपर्क कायम करना चाहिए. उन्होंने पूछा कि कैसे करें. मैंने बताया कि विदेश मंत्रालय में अपने पुराने साथियों की मदद से मैं यह इंतजाम कराता हूं कि भारत आने वाले विदेश मंत्री और प्रधानमंत्री उनसे मिलने आएं. आखिरकार, कांग्रेस अध्यक्ष होने के नाते वे एक मायने में विपक्ष की नेता भी तो थीं.
मैंने इस बारे में अपने दोस्त ब्रजेश मिश्र से बात की. उन्होंने इनकार तो नहीं किया पर वादा भी नहीं किया. कुछ महीने बाद विदेश मंत्रालय दूसरे देशों के विदेश मंत्रियों और प्रधानमंत्रियों की यात्रा के कार्यक्रमों में कांग्रेस अध्यक्ष से मुलाकात को भी शामिल करने लगा.
पहले पहल सोनिया इन मुलाकातों के प्रति उत्सुक नहीं रहती थीं. उनका सवाल होता था, “मैं उनसे क्या कहूंगी?” मेरी सलाह होती थी, “सुनिए, आपको बहुत सारी जानकारी मिलेगी.” 1999 और 2005 के बीच इनमें से अधिकतर बैठकों में मैं मौजूद रहता था. मेहमान के आने से कुछ मिनट पहले 10 जनपथ पहुंच जाता था. शुरू-शुरू में तो सोनिया बराबर मेरी तरफ  मुड़ जाती थीं जिससे मुझे बड़ी झेंप लगती थी. इस पर सबकी नजर पड़ी. मैंने कहा कि वे ऐसा करने से बचें. धीरे-धीरे इन मेहमानों के साथ सोनिया की बातचीत में मीडिया की दिलचस्पी बढऩे लगी.
सोनिया को प्रियंका और उनके बच्चों की सुरक्षा की बड़ी फिक्र रहती थी. मैंने ब्रजेश मिश्र से बात करने का वादा किया और बाद में उनसे बात भी की. उन्होंने सोनिया की इच्छा के अनुसार चुपचाप जरूरी इंतजाम कर देने का भरोसा दिलाया था.
सोनिया से मेरी बढ़ती नजदीकी भी छिपी नहीं रही. मैं लगभग रोज 10 जनपथ जाने लगा था. लोग मुझे सोनिया के दरबार के सबसे विश्वस्त लोगों में गिनने लगे और कुछ शुभचिंतकों ने तो जोश दिलाया, “आप उनके सबसे अच्छे संकटमोचन हैं.”
मेरा जवाब होता था, “बकवास”
सोनिया और मेरे बीच राजनैतिक चर्चा एकदम अलग, गंभीर और ठोस मुद्दे पर होती थी. हालांकि अनौपचारिक बातचीत और गपशप बहुत दिलचस्प हुआ करती थी. एक बार मैं अपनी विदेश यात्रा से लौटा तो उनके पहले शब्द थे, “मैंने आपको मिस किया.”
सोनिया अब लोगों के सामने कम झिझकने लगी थीं पर अभी बहुत फासला तय करना बाकी था. कार्यकारिणी की बैठकों में भी वे बहुत कम बोलतीं थीं और रूखी लगती थीं.

“सोनिया ने कौंडा को ललित सूरी का होटल छोडऩे पर मजबूर किया”
भारत की स्वाधीनता के 50 वर्ष पूरे होने पर 15 अगस्त, 1997 को इंदिरा गांधी स्मारक ट्रस्ट ने एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया और जांबिया के पूर्व राष्ट्रपति केनेथ कौंडा को आमंत्रित किया. इससे पिछले वर्षों में सभी मेहमानों को बाराखंभा रोड पर ललित सूरी के होटल में ठहराया जाता था.
1997 के सम्मेलन में सोनिया ने फैसला किया कि मेहमान ओबेरॉय होटल में ठहरेंगे. कौंडा एक दिन बाद आए और पहले की तरह हवाई अड्डे से सीधे सूरी के होटल में पहुंच गए. मैंने सोनिया को उनके आने और सूरी के होटल में ठहरने की सूचना दी. सोनिया भड़क गईं और मुझ्से कहा कि कौंडा से मिलकर उनसे ओबेरॉय में ठहरने का अनुरोध करूं. साफ तौर पर यह मांग अनुचित थी. मैं कौंडा को कई वर्ष से जानता था पर मेरा काम कतई आसान नहीं था. मैंने कौंडा को जब इस बारे में बताया तो उन्होंने कहा कि अब वे वहां ठहर गए हैं और लंबी उड़ान के बाद आराम करना चाहते हैं. मैंने सोनिया को कौंडा का संदेश दे दिया. मामला वहीं खत्म हो जाना चाहिए था, पर नहीं हुआ. अहंकार हावी हो गया. सोनिया ने मुझसे कहा कि कौंडा के पास वापस जाओ और उनसे ओबेरॉय में ठहरने के लिए फिर आग्रह करो. मैंने बहुत समझाया पर उन्होंने मेरी एक न मानी. मैंने उनसे यहां तक कह दिया कि उनकी यह जिद्द किसी भी मायने में सही नहीं है.
कौंडा अफ्रीका के एक सबसे सम्मानित और प्रशंसित नेता थे. वे सोनिया से 22 साल बड़े थे. इंदिरा गांधी और राजीव गांधी कभी किसी से ऐसा रूखा व्यवहार नहीं करते थे. दूसरा संदेश सुनने के बाद कौंडा ने कहा कि उनकी स्थिति बड़ी विचित्र हो जाएगी. उनका कहना था कि “भला सूरी से मैं क्या कहूंगा.” कौंडा मेरी हालत भांप गए. मैंने बता दिया कि अब संबंध अच्छे नहीं हैं. कौंडा सूरी से क्षमा याचना के बाद होटल बदलने पर सहमत हो गए.
सोनिया जानबूझकर सनकीपन दिखा रही थीं. यह उन्हें शोभा नहीं देता था. कौंडा के साथ हुई यह घटना अशोभनीय थी.

“272 के समर्थन की गफलत के बाद कोई और नहीं बच पाता”
1998 में सोनिया ने तय किया कि अब लोकसभा में उनके प्रवेश का समय आ गया है. खानदानी सीट अमेठी से वे भारी बहुमत से चुनी गईं. इसके बाद कांग्रेस संसदीय दल का नेता चुना जाना स्वाभाविक था. लेकिन अपने पहले कार्यकाल में वे एक बार भी लोकसभा में नहीं बोलीं. असल में कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद सोनिया ने दो बड़ी भूल कीं.
मैं वायरल बुखार में बिस्तर पर पड़ा था तभी राष्ट्रपति के.आर. नारायणन के समझदार सचिव गोपालकृष्ण गांधी का फोन आया. वे चाहते थे कि मैं सोनिया गांधी से मिलकर अनुरोध करूं कि धर्मनिरपेक्ष सरकार बनाने के लिए प्रधानमंत्री के तौर पर वे ज्योति बसु का समर्थन करें. मैं यह बात कहने के लिए 10 जनपथ पहुंचा. उनकी स्टडी और सम्मेलन कक्ष में कदम रखते ही मैंने देखा कि प्रणब मुखर्जी, अर्जुन सिंह और माखनलाल फोतेदार वहां पहले से उनके साथ थे. अपनी बात कहने के बाद मुझे लगा कि वे तीनों ज्योति बसु के विरुद्ध थे और सोनिया उनकी तरफ झुक रही थीं. मेरा मानना था कि ज्योति बसु अपने से पहले के दो प्रधानमंत्रियों से कई मायनों में बेहतर होंगे. आखिरकार माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के पोलित ब्यूरो ने ज्योति बाबू को प्रधानमंत्री बनने की अनुमति न देकर हमारी मुश्किल आसान कर दी. बाद में भले ही वे अपनी भूल पर पछताए और उसे ऐतिहासिक भूल की संज्ञा दी गई.
दूसरा गलत फैसला अप्रैल, 1999 के अंतिम सप्ताह में हुआ. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के नेता अटल बिहारी वाजेपयी जब सरकार नहीं बना पाए तो जबरदस्त राजनैतिक उठा-पटक का दौर चला. कांग्रेस ने अन्य विपक्षी दलों के समर्थन से सरकार बनाने का दावा पेश किया. अर्जुन सिंह और दूसरे नेताओं के कहने पर सोनिया राष्ट्रपति नारायणन से मिलीं और 272 सांसदों के समर्थन का दावा पेश कर दिया. नारायणन ने बहुमत साबित करने के लिए दो दिन दिए. लेकिन ऐन मौके पर समर्थन का भरोसा दिला चुके समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव पलटी मार गए और कांग्रेस के पैरों तले से जमीन खींच ली. 26 अप्रैल, 1999 को लोकसभा भंग कर दी गई. सोनिया बुरी तरह शर्मिंदा हुईं. उस समय तक वे राजनीति के अखाड़े में नौसिखिया थीं और नहीं जानती थीं कि यह कैसा खूनी खेल है. कांग्रेस का कोई और नेता होता तो ऐसी गफलत के बाद दरवाजे के बाहर खड़ा होता.

“वाजपेयी ने न्यूयॉर्क में सोनिया को तुरंत सुरक्षा मुहैया करा दी”2000 और 2003 के बीच सोनिया अमेरिका गईं और उपराष्ट्रपति डिक चेनी तथा विदेश मंत्री कोडोलीजा राइस जैसी हस्तियों से मिलीं. वे ऑक्सफोर्ड और हांगकांग भी गईं. मैं उनके साथ था. विदेश में उनका व्यक्तित्व एकदम बदल जाता था. सीधी, सहज, तनाव मुक्त, दूसरों का अधिक ख्याल रखने वाली और कम जिद करने वाली महिला हो जाती थीं.
न्यूयॉर्क की एक घटना ऐसी हुई जिसका जिक्र करना यहां मुनासिब है. सोनिया और उनके प्रतिनिधिमंडल के सदस्य—मनमोहन सिंह, मुरली देवड़ा, जयराम रमेश और मैं—कार्लाइल होटल में ठहरे थे. वहां हम शाम को देर से पहुंचे थे. वहां पहुंचकर मुझे पता चला कि न्यूयॉर्क के अधिकारियों ने सोनिया के लिए सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं किया था. मैं हैरान रह गया. उनके कमरे में कोई भी जा सकता था. सोनिया ने इसे नजरअंदाज किया पर मैंने तुरंत प्रधानमंत्री वाजपेयी को फोन किया. दिल्ली में उस समय आधी रात का समय था. बड़े दिल वाले वाजपेयी ने कहा कि वे अभी फोन करेंगे. तकरीबन आधे घंटे बाद वॉशिंगटन में हमारे राजदूत ललित मानसिंह का फोन आया. उन्होंने बताया कि अभी-अभी प्रधानमंत्री का फोन आया था और मुझसे तुरंत सोनिया गांधी के लिए सुरक्षा इंतजाम करने को कहा गया है. अटल बिहारी वाजेपयी अपनी बात के पक्के थे.

“राजनीति ने सोनिया की खाल मोटी कर दी”जनता में सोनिया की छवि बहुत आकर्षक नहीं है और इसके लिए एक हद तक वे स्वयं जिम्मेदार हैं. वे अपना मन किसी को नहीं पढऩे देतीं, अपने दायरे से बाहर नहीं निकलतीं. वे बेहद गोपनीय और शक करने वाली महिला हैं. लोग उन्हें देखकर हैरान होते हैं, सराहते नहीं. उनके उल्लेखनीय जीवन से मुझे विशाल भारतीय मंच पर अभिनीत एक दुखद ग्रीक कथा की याद आती है. हर व्यक्ति उनकी जीवनी लिखना चाहेगा. अनेक लोगों ने ऐसी कोशिश की है पर कुछ न कुछ कमी रह जाती है. उनकी किताबों में सार और स्टाइल पकड़ नहीं आती है और न ही कोई विश्लेषण और विशेष समझ होती है.
सोनिया ने जब से भारत की धरती पर कदम रखा, उनके साथ शाही व्यवहार हुआ है. उन्होंने प्रमुख महिला की तरह व्यवहार किया है. समय के साथ-साथ वे झिझकती, नर्वस और शर्मिली महिला से महत्वाकांक्षी, अधिनायकवादी और कड़क नेता बनकर उभरी हैं. उनकी नाराजगी कांग्रेसजनों में डर पैदा करती है. कांग्रेस के पूरे इतिहास में लगातार 15 साल तक कोई दूसरा नेता पार्टी अध्यक्ष नहीं रहा. कांग्रेस पर उनकी पकड़ पूरी है. यहां तक कि पंडित जवाहरलाल नेहरू से भी अधिक पक्की और टिकाऊ. उनके नेतृत्व में असहमति कुचल दी जाती है, खुली चर्चा पर एकदम रोक है. चुप्पी को हथियार बनाया जाता है और हर परोक्ष संकेत एक संदेश की तरह है. बर्फीली नजर एक चेतावनी है. विपक्षी दल भी बहुत संभलकर व्यवहार करते रहे हैं, लेकिन अब यह तेजी से बदल रहा है. कांग्रेस पार्टी में असफलता या हार के लिए वे कभी दोषी नहीं होतीं और उनकी कभी आलोचना नहीं की जाती. चाटुकारों की फौज यही नारा लगाती है, “सोनिया जी कभी गलती नहीं कर सकतीं.”
अपने खास सिंहासन पर विराजमान वे कोड़ा फटकराती हैं और राज करती हैं. मनमाने ढंग से लोगों को प्रसाद बांटा जाता है. कम चहेतों को नजरअंदाज किया जाता है. इस मुखौटे के पीछे एक अति साधारण और असुरक्षित व्यक्तित्व उभरता है. उनके सनकीपन की तारीफ  होती है. तराशे हुए व्यक्तित्व की छवि प्रचारित की जाती है. राजनीति ने उनकी खाल मोटी कर दी है.

प्रधानमंत्री के साये में2004 के लोकसभा चुनाव में एनडीए हार गया और कांग्रेस ने बहुमत और सरकार बनाने का दावा करने के लिए कई पार्टियों के साथ संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) का गठन किया. हर किसी को उम्मीद थी कि सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बनेंगी. उम्मीद के मुताबिक जब घोषणा नहीं हुई तो अफवाहें उडऩे लगीं. फिर तो टीवी चैनलों ने ऐलान करना शुरू कर दिया कि सोनिया प्रधानमंत्री नहीं बन रही हैं.
कांग्रेस नेताओं की बैठक बुलाई गई. मेरी याददाश्त दुरुस्त है तो बैठक में मनमोहन सिंह, प्रणब मुखर्जी, अर्जुन सिंह, शिवराज पाटील, गुलाम नबी आजाद, माखनलाल फोतेदार और मैं था. बैठक के मकसद के बारे में मेरे और मनमोहन के अलावा किसी को पता नहीं था. सोनिया ने कहा कि उन्होंने मनमोहन सिंह से प्रधानमंत्री बनने का आग्रह किया है. मनमोहन ने फौरन कहा, “मैडम, मुझे जनादेश नहीं मिला है.”
कोई कुछ नहीं बोला. मुझसे बोलने को कहा गया. मैंने मनमोहन से कहा कि जिसे जनादेश मिला है, वह आपको सौंप रहा है. उन्हें यूपीए सरकार की अगुआई करनी थी.
मनमोहन को प्रधानमंत्री के रूप में सोनिया का चयन वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं को रास नहीं आ रहा था. कांग्रेस कार्यकारिणी के ज्यादातर सदस्य उनसे वरिष्ठ थे. कार्यकारिणी के सदस्य इससे भी खफा थे कि उन्हें अंधेरे में रखा गया.
मनमोहन सिंह सरकार ने 22 मई को शपथ ली. मैंने बतौर विदेश मंत्री शपथ ली.
शाम को मैं मनमोहन सिंह से मिला. वे मुझे विदेश मंत्रालय में स्थापित करने के लिए काफी मशक्कत कर चुके थे और आखिरी क्षण तक अमेरिकी लॉबी कथित तौर पर इसे नहीं होने देना चाहती थी. मनमोहन को इसके नतीजे का अंदाजा था. उन्होंने बताया कि अमेरिकी कितने ताकतवर हैं और यह कि शायद वे भारत समेत कुछ देशों को अस्थिर करने की हद तक जा सकते हैं. मैंने सतर्क करने के लिए मनमोहन की तारीफ की लेकिन उन्हें यह भी याद दिलाया कि हमारी विदेश नीति वॉशिंगटन डीसी में नहीं, नई दिल्ली में तैयार होती है. बेशक, मैं भारत-अमेरिकी रिश्ते को मजबूत करने की हरसंभव कोशिश करूंगा लेकिन उनके सामने झुकने का तो सवाल ही नहीं है.

“मनमोहन ने एटमी करार नहीं कराया”लॉर्ड कर्जन की जीवनी का उपसंहार लिखते हुए विंस्टन चर्चिल ने लिखा, “सुबह सोने, दोपहर चांदी और शाम शीशे की तरह थी.” डॉ. मनमोहन सिंह के बतौर प्रधानमंत्री कार्यकाल को कुछ-कुछ इन्हीं शब्दों में बयान किया जा सकता है.
वे कोई छलावा नहीं करते लेकिन अपनी भावनाओं को छुपाए रखने में माहिर हैं. तीन जनवरी, 2014 को प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने एटमी करार को अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि बताया. लगभग एक दशक तक मैंने इसमें अपनी भूमिका के बारे में कुछ नहीं कहा. लेकिन अब मुझे सुधार करने दीजिए.
राष्ट्रपति जॉर्ज बुश की सरकार में विदेश मंत्री कोंडोलीजा राइस ने अपनी आत्मकथा नो हायर ऑनररू ए मेमोयर ऑफ माइ ईयर्स इन वॉशिंगटन में इस करार के बारे में लिखा है. मैं उसी की कुछ पंक्तियों से अपनी बात शुरू करता हेः
“मैं एक दिन पहले ही भारतीय विदेश मंत्री नटवर सिंह से विलार्ड होटल के उनके सुइट में मिली. साफ-साफ कहें तो हमारे विदेश विभाग में यह बात पच नहीं रही थी कि हम एक ऐसी जगह बात करने जा रहे हैं, जहां प्रेस की मौजूदगी नहीं होगी और माहौल भी अनौपचारिक-सा होगा...नटवर अड़े थे. वे करार तो चाहते थे लेकिन प्रधानमंत्री आश्वस्त नहीं थे कि वे नई दिल्ली में इस पर मुहर लगा सकेंगे. मैं कुछ चकित थी, शायद इसलिए भी कि नटवर के इस संकेत को मैं नहीं पढ़ पाई कि उन्हें अपनी सरकार की ओर से बोलने का अधिकार प्राप्त है...”
हमारी बैठक के बाद कोंडोलीजा ने राष्ट्रपति से बात की और उन्हें बताया कि मनमोहन सिंह करार संपन्न नहीं करा सकते. कोंडोलीजा ने मुझसे बैठक तय कराने का आग्रह किया और मैं आखिरकार यह करने में कामयाब हो गया.
अमेरिकी विदेश मंत्री अगले दिन नाश्ते पर पहुंचीं. वे अपने साथ करार का संशोधित मजमून लेकर आई थीं ताकि मनमोहन सिंह उस पर रजामंदी दे सकें. मैं भी मौजूद था. मनमोहन ने जब मजमून के एक-दो बिंदुओं पर आपत्ति जताई तो मैंने विदेश सचिव श्याम सरन और अनिल काकोडकर से कहा कि वे प्रधानमंत्री के बताए मुद्दों को शामिल करके नया मजमून तैयार करें. नए मजमून के साथ कोंडोलीजा व्हाइट हाउस की ओर चल पड़ीं ताकि उसे राष्ट्रपति को दिखा दें. तब तक सुबह के साढ़े नौ बज चुके थे और जॉर्ज बुश तथा मनमोहन सिंह की बैठक नौ बजे के लिए ही तय थी. मैं प्रधानमंत्री से पहले पहुंच गया और कोंडोलीजा के बगल में बैठा. आखिरकार हम समझौते पर आगे बढ़े.
दिल्ली लौटकर मैंने पाया कि सोनिया गांधी  राजी नहीं हैं. उन्होंने पूछा, “नटवर, आप सभी लोग इस पर राजी कैसे हो सके? आप जानते हैं कि देश में अमेरिका की नीतियों को लेकर एक तरह का विरोध है.” फिर भी छह महीने बाद उनका दिमाग बदल गया.
एटमी विधेयक 2008 में लोकसभा में रखा गया. वह मामूली बहुंमत से पास हुआ. एटमी करार पर संसद, वैज्ञानिक बिरादरी और देश सभी बंटे हुए थे. संयोग से वही सबसे प्रचारित एटमी करार बना.

वोल्कर का झटका1996 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने इराकी जनता की मदद के लिए अनाज के बदले तेल कार्यक्रम शुरू किया. इसके अंतर्गत इराक सरकार संयुक्त राष्ट्र्र की देखरेख में तेल बेचकर जनता के लिए भोजन और चिकित्सा सामग्री खरीद सकती थी. सारा लेन-देन संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से होना था. 20 मार्च, 2003 को अमेरिकी सरकार ने व्यापक विनाशकारी हथियारों की तलाश में इराक पर हमला कर दिया. सद्दाम हुसैन को सत्ता से हटा दिया गया और 60 अरब डॉलर का अनाज के बदले तेल कार्यक्रम एकाएक बंद हो गया. कार्यक्रम के संचालन में तमाम गड़बड़ी बताने वाले कागजात सामने आए. पता चला कि सरचार्ज या रिश्वत की रकम को तेल के दाम में शामिल कर लिया जाता था जो सद्दाम हुसैन की जेब में जाती थी. कुछ साल बाद आरोपों की जांच के लिए महासचिव कोफी अन्नान ने स्वतंत्र जांच समिति गठित की जिसे बाद में वोल्कर समिति कहा गया क्योंकि उसके अध्यक्ष अमेरिकी फेडरल रिजर्व के पूर्व अध्यक्ष पॉल वोल्कर थे. वोल्कर को जिन मुख्य आरोपों की जांच करनी थी वे अन्नान और उनके पुत्र कोजो की गतिविधियों से संबंद्ध थे. समिति ने रिपोर्ट तैयार करने में 18 महीने लगाए और 27 अक्तूबर, 2005 को रिपोर्ट सौंप दी. वोल्कर रिपोर्ट के संलग्न दस्तावेजों में उन कंपनियों और व्यक्तियों के नाम थे जिन्हें अनाज के बदले तेल कार्यक्रम से मुनाफ हुआ था.

“सोनिया को मुझे संदेह का लाभ देना चाहिए था”26 अक्तूबर, 2005 को मैं रूस के विदेश मंत्री सरगेई लावरोव से आपसी बातचीत के लिए मॉस्को गया. मुलाकात से पहले मुझे बताया गया कि तीसरे पहर के सत्र में खुद राष्ट्रपति पुतिन आएंगे. उनसे मेरी आखिरी मुलाकात 28 अक्तूबर को तीसरे पहर होनी थी. यह बैठक शाम पांच बजे खत्म हुई. दो घंटे बाद मैंने फ्रैंकफर्ट के लिए उड़ान पकड़ी, जहां मुझे रात बितानी थी.
अगले दिन सुबह पांच बजे मेरे ऑफिस का निदेशक दौड़ता हुआ आया और बोला कि सयुंक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि निरुपम सेन तुरंत मुझसे बात करना चाहते हैं. मैंने पूछा, निरुपम, मुझे सुबह-सुबह क्यों जगा दिया. मैं उनके मुंह से यह सुनकर हैरान रह गया कि वोल्कर रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र महासचिव को सौंप दी गई है. उसमें मेरा, कांग्रेस पार्टी का और कई कंपनियों का नाम उन लाभार्थियों में शामिल है जिनके साथ कोई अनुबंध नहीं था. रिपोर्ट के अनुसार कांग्रेस पार्टी 1997 से इराक के साथ तेल का कारोबार कर रही थी. सुबह साढ़े छह बजे के आसपास मुझे ई-मेल से द हिंदू के पहले पन्ने की रिपोर्ट मिली जिसमें यह तथ्य उजागर किया गया था.
वोल्कर ने हमारे नाम शामिल करने से पहले कांग्रेस पार्टी या मुझे कभी सूचित नहीं किया जबकि ऐसा करना चाहिए था.
मेरे लिए तो यह जबरदस्त झटका था. उस दिन मैं दिनभर बेचैन रहा. मैंने प्रधानमंत्री को तार भेजा कि मैं दिल्ली पहुंचते ही अपनी स्थिति स्पष्ट कर दूंगा. रवाना होने से पहले मुझे कांग्रेस महासचिव अंबिका सोनी का एक बयान दिखाया गया जिसमें उन्होंने मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा था, “जहां तक व्यक्तियों का सवाल है, वे अपना बचाव करने में खुद समर्थ हैं.”
मैं भड़क उठा. मैंने सारा जीवन विदेश सेवा और राजनीति में बिताया है और मैं जानता था कि ऐसा बयान कांग्रेस अध्यक्ष की मंजूरी के बिना जारी नहीं हो सकता. गांधी-नेहरू परिवार के साथ मेरे रिश्तों की शुरुआत जुलाई, 1944 में हुई थी. मुझे संदेह का लाभ तो देना ही चाहिए था.
मैं रात साढ़े 10 बजे पालम हवाई अड्डे पर उतरा. अगले दिन सुबह पता चला कि प्रधानमंत्री शहर से बाहर हैं. मैंने सोनिया से संपर्क नहीं किया क्योंकि पार्टी के अधिकृत बयान से मैं बहुत नाराज था और उम्मीद कर रहा था कि वे मुझे बुलाएंगी. मेरा मानना था कि वे अच्छी तरह जानती थीं कि क्या हो रहा था और क्यों हो रहा था. मीडिया ने मुझे दोषी करार दे दिया था. कुछ वरिष्ठ कैबिनेट मंत्रियों ने मीडिया को यह बात समझाई थी. संयुक्त राष्ट्र में हमारे स्थायी मिशन के संदेशों में साफ  लिखा था कि रिपोर्ट में कई बड़ी हस्तियों के नाम अनाज के बदले तेल कार्यक्रम से लाभ पाने वालों में शामिल थे. इनमें कई सरकारों के अध्यक्ष और नामी राजनेता थे. ग्लोबल पॉलिसी फोरम ने वोल्कर समिति को जो पूरी सूची सौंपी थी, उसमें भारत से दो नाम थे—कश्मीर की पैंथर्स पार्टी के भीम सिंह और कांग्रेस पार्टी.
अमेरिकी संसद के निचले सदन की निगरानी और जांच उपसमिति ने 9 फरवरी, 2005 को रिपोर्ट पर चर्चा की. उस समय 270 लाभार्थियों की सूची में मेरा नाम नहीं था. कागजात बताते हैं कि बैठक में एमईएमआरआइ (मिडिल ईस्ट मीडिया रिसर्च इंस्टीट्यूट) के डॉक्टर निमरोद रफायली ने सूची पेश की थी. 9 मार्च को बैठक में पेश की गई सूची में मेरा नाम शामिल कर दिया गया. भारत के अलावा सूची में शामिल सभी देशों ने रिपोर्ट खारिज कर दी.
एक या दो दिन के भीतर मुझ पर कहर टूट पड़ा. कांग्रेस के एक जूनियर कार्यकर्ता और क्रोएशिया में भारत के राजदूत अनिल मथरानी ने इंडिया टुडे को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि कांग्रेस पार्टी और मैंने 2001 में इराक यात्रा के दौरान अपने लिए तेल बैरल के वाउचर मांगे थे. मथरानी अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के विदेश विभाग में काम कर चुका था. इंटरव्यू में उसने कहा, “बेशक उन्हें, (नटवर सिंह को) शुरू से ही इन सारी बातों की जानकारी थी. वे चुप रहे. नटवर और कांग्रेस को मालूम न होना, कोरा झूठ है.”

“जिम्मेदारी के बिना पीछे से हुकूमत चलाने का सुख”जनवरी, 2001 में कांग्रेस पार्टी ने इराक के उप-प्रधानमंत्री तारिक अजीज के निमंत्रण पर एक दोस्ताना प्रतिनिधिमंडल बगदाद भेजा. अजीज को मैं कई वर्ष से जानता था. मेरे नेतृत्व में इस दल में महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री ए.आर. अंतुले, पी. शिवशंकर, कैबिनेट मंत्री एडुआर्डा फलेरो, कांग्रेस के विदेश विभाग में सचिव अनिल मथरानी शामिल थे. मैं राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन के नाम कांग्रेस अध्यक्ष का पत्र ले गया था जो मैंने तारिक अजीज को सौंप दिया. मेरा बेटा जगत सिंह उस समय युवा कांग्रेस का महासचिव था. वह मेरे साथ गया था क्योंकि बाइपास सर्जरी के बाद मुझे मदद की जरूरत थी. युवा कांग्रेस से जुड़े होने के कारण उसे गुटनिरपेक्ष छात्र युवा संगठन (एनएएसवाइओ) के सदस्य सुबोधकांत सहाय ने संगठन के सम्मेलन में आमंत्रित किया था. मेरे ख्याल से सहाय भी उस उड़ान में हमारे साथ थे.
जगत के मित्र अंदलीब सहगल के इराक में करोबारी संबंध थे. संयोग से, हमारे प्रवास के वक्त वह भी बगदाद में था. शायद रॉबर्ट वाड्रा से भी उसकी दोस्ती थी. वह अकसर बगदाद  जाता था.
मथरानी के इंटरव्यू पर विपक्ष ने संसद में हंगामा किया. कांग्रेस के मंत्रियों और मीडिया ने भी इसे खूब उछाला. जो लोग कल तक मेरे आगे-पीछे रहते थे और सोनिया गांधी से अपनी सिफारिश करवाने को उत्सुक रहते थे, वे अचानक मेरे दुश्मन हो गए. साफ जाहिर था कि मेरे खिलाफ सोच-समझकर ताकतवर लोग अभियान चला रहे थे. कहीं यह नहीं लिखा था कि वोल्कर रिपोर्ट में कांग्रेस पार्टी का नाम भी बिना अनुबंध वाले लाभार्थियों में शामिल है. देश भर में ऐसे तमाम लोग थे जिन्होंने मेरे पक्ष में लिखा और बोला. इनमें पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर भी थे. विपक्ष के नेता लालकृष्ण आडवाणी ने एक संवाददाता सम्मेलन में शक भी जाहिर किया था कि कहीं मुझे बलि का बकरा तो नहीं बनाया जा रहा.
लगातार जारी बदनामी के बावजूद मैं नहीं झुका. 8 नवंबर को मनमोहन सिंह के साथ मेरी लंबी बैठक चली. मुलाकात सुखद नहीं थी. मैं इतना उत्तेजित था कि मैंने इतने तेज स्वर में बात की जो उन्हें बुरी लगी होगी. कांग्रेस अध्यक्ष और प्रधानमंत्री ने तय किया कि विवाद को देखते हुए मुझे विदेश मंत्री का पद छोड़कर बिना विभाग का मंत्री हो जाना चाहिए. कांग्रेस में सोनिया गांधी की जानकारी और सहमति के बिना पत्ता भी नहीं खड़कता. यह बिना जिम्मेदारी की सत्ता और बेखटके पिछली सीट से ड्राइविंग है. मैं जल्दी ही अकेला पड़ गया. मीडिया ने मुझ पर और मेरे परिवार पर दबाव बढ़ा दिया. 6 दिसंबर को मैंने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया.
7 नवंबर, 2005 को संयुक्त राष्ट्र में अवर महासचिव रह चुके वीरेंद्र दयाल को वोल्कर समिति के साथ संपर्क के लिए भारत सरकार का विशेष दूत नियुक्त किया गया. 24 नवंबर को दयाल अपने साथ हजारों दस्तावेज लेकर लौटे और प्रवर्तन निदेशालय को सौंप दिए.
सरकार ने 11 नवंबर, 2005 को आरोपों की जांच के लिए जस्टिस आर.एस. पाठक जांच समिति गठित कर दी. समिति का गठन जिस तरह हुआ था उसे देखकर स्पष्ट हो गया कि उसकी कार्रवाई एकतरफा होगी.

“यूपीए ने वीरेंद्र दयाल के दस्तावेज क्यों छिपाए?”मैं जस्टिस पाठक को अरसे से जानता था. जब मैं प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सचिवालय में नियुक्त था तब भी मैं उनके पिता जी.एस. पाठक को भी अच्छी तरह जानता था. 1987 में रिटायर होने के तुरंत बाद ही जी.एस. पाठक मेरे पास आए थे. वे हेग में इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस की उम्मीदवारी के लिए मेरा सहयोग चाहते थे. तब मैं विदेश राज्यमंत्री था. विदेश मंत्रालय ने उनके चयन के लिए बहुत मेहनत की थी. मैंने 24 मार्च, 2006 को एक बंद लिफाफे में अपना हलफनामा कमेटी को भेजा लेकिन अप्रैल के शुरू में ही इसके कुछ हिस्से अखबारों में छप गए. मैंने जस्टिस पाठक को इस बारे में बताया लेकिन मुझे कोई जवाब नहीं मिला. 31 मई, 2006 को मुझसे पाठक जांच कमेटी के सामने पेश होने को कहा गया. जस्टिस पाठक के अलावा वरिष्ठ वकील भी उनकी मदद को मौजूद थे. हर एक को संबंधित मंत्रालय ने चुना था. पांच मिनट में ही यह स्पष्ट हो गया कि कमेटी का रवैया पक्षपाती है. उन्हें कांग्रेस को सारे आरोपों से बरी करना है.
जस्टिस पाठक ने अंततः अपनी रिपोर्ट प्रधानमंत्री को 7 अगस्त, 2006 को सौंप दी. अपने फैसले में उन्होंने कांग्रेस पार्टी को एकदम पाक-साफ करार दे दिया था. मेरे बारे में उन्होंने कहा, “इस आशय के कोई सबूत नहीं है कि नटवर सिंह को ठेके से किसी तरह का वित्तीय या कोई और लाभ पहुंचा.” इसके बावजूद वित्त मंत्रालय के ईडी ने मेरे और मेरे बेटे के खिलाफ आरोप पत्र दायर किए. जस्टिस पाठक ने एक बार मुझसे कहा था कि ऐसा करते समय वे बेहद तनाव में थे.
फरवरी, 2006 में मैं अपनी मित्र और राज्यसभा सदस्य शोभना भरतीया के घर पी. चिदंबरम से मिला था. शोभना के.के. बिरला की बेटी हैं. चिदंबरम ने मुझसे कहा कि क्या मुझे ईडी के दफ्तर जाने में कोई आपत्ति है? सरकार दो हफ्तों में मामले को निबटाना चाहती है. मैं मान गया. उन्होंने आश्वासन दिया कि मेरे ईडी जाने की खबर कहीं नहीं आएगी.
ईडी के साथ मेरी दो मुलाकातें हुईं. दोनों ही मुलाकातों के बारे अगले दिन ही मीडिया में छपा. मैंने वित्त मंत्री को फोन किया. उनका जवाब था, “नटवर, हमारे यहां लोकतंत्र है.” मेरे पुत्र को भी दो बार बुलाया गया. हालांकि वोल्कर रिपोर्ट में उसका नाम नहीं था. उसका पासपोर्ट जब्त कर लिया गया. उसे आरोप पत्र दिया गया.
मुझे पता लग गया कि वीरेंद्र दयाल द्वारा हासिल दस्तावेज पाठक कमेटी को दिखाए ही नहीं गए. जब मैंने न्यायमूर्ति पाठक से पूछा तो उनका जवाब था, “मैं क्या कह सकता हूं. यह तो लंबी कहानी है.” आज दिन तक वह रिपोर्ट मेरे लिए रहस्य बनी हुई है.
आखिर यूपीए सरकार इन दस्तावेजों की सामग्री सामने लाने में हिचक क्यों रही थी? इसकी वजह साफ हैः इसमें कुछ असहज तथ्य थे, जिन्हें वह छिपाने का प्रयास कर रही थी.
26 फरवरी, 2008 को महाराजा सूरजमल के शताब्दी समारोह में काफी कांग्रेसी आए थे. वहीं मैंने कांग्रेस पार्टी और राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. वोल्कर ने लॉस एंजेलिस टाइम्स के एक रिपोर्टर के सामने माना कि रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र को बेनकाब करने और अन्नान को पद से हटाने के लिए काफी कुछ मसाला था. लेकिन जब वह घड़ी आई तो वोल्कर ने कहा, “मैं बहुत असहज महसूस कर रहा था.” रिपोर्टों के मुताबिक, वोल्कर रिपोर्ट के प्रकाशित होने से कुछ ही घंटे पहले महासचिव और उनके वकील ने वोल्कर से “कोजो अन्नान के व्यापारिक सौदों की भाषा बदलने को कहा.”
ईडी ने अभी मेरा केस निबटाया नहीं है. पिछले सात साल से यह चल रहा है. अब तक ईडी ने मेरे वकील को सिर्फ एक सुनवाई के लिए बुलाया है. मेरे खिलाफ कुछ आयकर मामले हैं जिन्हें मुझे फंसाने के लिए गढ़ा गया है. मीडिया का हमला 2010 तक चलता रहा. लेकिन ऐसे भी हैं जिन्हें मेरे बेकसूर होने कर पूरा विश्वास है.

“अखबारों ने सोनिया के डर से मेरे लेख को लौटा दिया”कांग्रेस पार्टी से मेरे निष्कासन को कड़कती सर्दी की रात को 2 बजे दो लाइन के नोट में अंजाम दिया गया. उसी शाम इसके लिए कांग्रेस कार्यकारिणी की एक खास बैठक बुलाई गई थी. तब मनमोहन सिंह मॉस्को में थे. उनसे संपर्क किया गया और उन्होंने अपनी मंजूरी दे दी.
दिवंगत अर्जुन सिंह ने मुझे बताया कि एक कोर ग्रुप मीटिंग बुलाई गई, उसके बाद वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने सोनिया से कहा कि यह तो साफ मामला है और मुझे जेल भेजा जा सकता है. एक अन्य बैठक में पाठक जांच प्राधिकरण स्थापित करने का फैसला लिया गया. मुझसे कहा गया कि कानून मंत्री हंसराज भारद्वाज लखनऊ में हैं, उन्हें खास विमान से उसी रात बुलाया गया. वे उस फैसले के खिलाफ थे क्योंकि मेरे खिलाफ “ममला” नहीं बनता था.
आयकर विभाग और ईडी ने मेरे और मेरे बेटे के खिलाफ मामले दायर किए, हालांकि बेटे का नाम वोल्कर रिपोर्ट में था भी नहीं. अखबारों ने मेरे लेख लौटा दिए थे. एक हिंदी अखबार ने तो कहा कि “वे मेरे लेख नहीं छाप सके क्योंकि सोनिया जी नाराज हो जाएंगी.” पाठक अथॉरिटी और ईडी के सामने मैंने जो कहा वह मीडिया में लीक हो गया.
मनमोहन सिंह या कोई अन्य कैबिनेट मंत्री सोनिया की मंजूरी के बिना मुझे हाथ नहीं लगा सकता था. कांग्रेस ने मुझे “गैर-जरूरी” बनाने का प्रयास किया लेकिन सफल नहीं हुई. मुझे किसी तरह का मलाल नहीं था, मलाल पालता तो अपना स्वाभिमान खो बैठता.
सोनिया की अब तक जो उपलब्धि रही है, वह है कांग्रेस—देश ही नहीं दुनिया की सबसे बड़ी और पुरानी पार्टियों में एक—को लोकसभा में 44 सदस्यों तक समेट देना. किसी भारतीय ने मेरे साथ ऐसा व्यवहार नहीं किया होता.

पुनश्चजब मैं इस पुस्तक को अंतिम रूप दे ही रहा था कि 7 मई, 2014 को सोनिया गांधी अपनी बेटी प्रियंका के साथ आईं. उनका आगमन अप्रत्याशित और विचित्र भी कहा जा सकता है. वे मेरी आत्मकथा को लेकर आशंकित थीं, शायद किसी खुलासे के डर से.
6 मई को सुबह प्रियंका का फोन आया कि क्या वे मुझसे मिल सकती हैं. मैं राजी हो गया और उनसे घर आने को कहा. आकर्षक व्यक्तित्व वाली प्रियंका अपनी मां की तरह ही शालीन कपड़े पहनती हैं. लेकिन अपनी मां और भाई के विपरीत सहज संवाद प्रतिभा उनमें है. जहां तक मैं जानता हूं, दक्षिण दिल्ली की दूसरी महिलाओं की तरह चुलबुलापन या शोखी उनमें नहीं है. हमने अमेठी, रायबरेली के बारे में बात की. उनके बच्चों के बारे में बात की कि वे बहुत जल्दी बड़े हो रहे हैं.
शुरू में वे हिचक रही थीं लेकिन जल्द ही असली मुद्दे पर आ गईं. उन्हें उनकी मां ने भेजा था. उन्होंने मेरे दिए गए इंटरव्यू की याद दिलाई. अपनी पुस्तक में वे मई, 2004 यानी यूपीए सरकार के शपथ ग्रहण से पहले की घटनाओं को भी शामिल करेंगे? मैंने कहा कि ऐसा इरादा तो है, लेकिन कोई मेरी पुस्तक का संपादन नहीं करेगा. तभी सोनिया अंदर आईं. मैंने कहा, “कितना सुखद आश्चर्य है.” वे जरूरत से ज्यादा मित्रवत व्यवहार कर रही थीं. ऐसा व्यवहार मुझे चकित कर रहा था. यह उनके व्यक्तित्व के एकदम विपरीत था. वे अपने अहंकार को ताक पर रख “करीबी” दोस्त से मिलने आई थीं. ऐसा करने में उन्हें साढ़े आठ साल लग गए.

सोमवार, 10 दिसंबर 2012

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lkfFk;ksa vki yksxksa es ls dqN yksxkas dks ;kn gksxk fd 16 uoacj 1992 bafnjk lkguh cuke Hkkjr ljdkj ;g tks dsl pyk ;g dsl vnj cSdoZM Dyklst ds eaMy deh”ku ij pyus okyh FkhA tc ;g dsl eaMy deh”ku ds dsl vnj cSdoZM Dyklst dh dsl Fkh vkSj blds ckjs esa lqizhe dksVZ 16 uoacj 1992 dks QSlyk fn;k T;knkrj vnj cSdoMZ Dyklst ds yksxksa dk ;g ekuuk gS ;g fu.kZ; vnj cSdoMZ Dyklst ds fgr eas gS exj ;g crkuk pkgrk gw¡ fd ;g fu.kZ; vnj cSdoMZ Dyklst ds fu.kZ; esa ugha gSA ;g ckr cSdoMZ Dyklst ds usrkvkas dks irk ugha gS rks dk;ZdrkZvksa dks dSls irk gksxk vkSj tc dk;ZdrkZvksa dks irk ugha gksxk rks lekt ds yksxksa dks dSls irk gksxkA eSa bl fo’k; ij dbZ ckj mŸkj izns”k eas cksy pqdk gw¡A fQj Hkh dqN ckrs vki yksxkas dks crkuk pkgrk gw¡A igyk fu.kZ; fd 52 izfr”kr vkschlh dks 52 izfr”kr vkj{k.k ugha feysxkA ;g fu.kZ; lqizhe dksVZ us 16 uoacj 1992 dks fn;kA vkSj dgk fd 50 izfr”kr ls T;knk vkj{k.k ugah fn;k tk ldrkA ;g mUgksaus vius fu.kZ; eas uhps fy[kkA tks 700 ist dk fMlhtu gS ;g ,sisDl dksVZ ds bfrgkl eas ;g 700 ist bruk cM+k fMth”ku gS vxj gLr fyf[kr eas ns[kk tk;s tks djhc 2000 ist dk ;g fMlhtu gSA vkSj ;g fMlhtu vnj cSdoMZ Dykl ds leFkZu eas ugha cfYd fojks/k eas fy;k x;kA eSa dsoy ,d ckr crkdj vkidks crkÅ¡xk fd ;g fu.kZ; dSls xyr gS lafo/kku eas vuqlwfpr tkfr@tutkfr dks muds la[;k ds vk/kkj ij vkj{k.k fn;k blls fl) gksrk gS fd Hkkjr dk lafo/kku la[;k ds fl)kar dks ekU;rk nsrk gSA ;fn lafo/kku us vuqlwfpr tkfr@tutkfr dks la[;k ds vuqikr eas vkj{k.k fn;k rks ;g ckr vkschlh ij Hkh ykxw fd;k tkuk pkfg, FkkA ;fn lqizhe dksVZ ,slk fu.kZ; nsrh rks ;g U;k;ksfpr vkSj loksZijh ekuk tkrkA ijUrq U;k;ikfydk us 50 izfr”kr ls vf/kd vkj{k.k ugha fn;k tk ldrk gS ftl ij fu.kZ; fn;k ;g laoS/kkfud ugha gSaA D;ksafd tc lqizhe dksVZ ;g fu.kZ; fy[k jgh Fkh mlh le; rfeyukMw esa 69 izfr”kr vkj{k.k vkWy jsMh ykxw FkkA bldk eryc ;g gqvk fd lqizhe dksVZ eas tks U;k;/kh”k cSBs gS mudks ekywe ugha gksxk] ekywe ugha Fkk ,slk ugha dgk tk ldrk gSA bl fy, ;g igyk fu.kZ; vnj cSdoMZ Dyklst ds fojks/k esa gSA vkSj nwljk fu.kZ; fjtosZ”ku gksxk vkSj og ukSdfj;kas eas gksxkA vkSj ;g 27 izfr”kr vkj{k.k gksxk exj ;g Øhfeys;j ds lkFk gksxk Øhfeys;j ;g Hkkjr  ds lafo/kku eas ugha gSA Hkkjr ds lafo/kku eas fy[kk gqvk gS lks”kyh ,M ,stwds”kuyh cSdoMZ Dykl] bdksuksfedyh cSdoMZ fy[kk gqvk ugha gS rks U;k;ikfydk dks lafo/kku fy[kus dk vf/kdkj ugha gSA lafo/kku fy[kus dk vf/kdkj laln dks gSA tcfd U;k;ikfydk dks lafo/kku fy[kus dk dksbZ vf/kdkj ugha gS U;k;ikfydk us viuh e;kZnk ls vkxs c<+dj mYy?kau djrs gq, cSdoMZ Dyklst ds fojks/k eas fu.kZ; fn;kA vkSj eaMy deh”ku ds fu.kZ; ds le; ;g fy[kk fd fiNM+s oxZ ds vUnj tks T;knk xjhc gSA mu yksxksa dks bldk Qk;nk gksuk pkfg,A rks eSa vkidks crkuk pkgrk gw¡ lqizhe dksVZ eas cSBs U;k;/kh”kkas dks crkuk pkgrk gw¡A fjtosZ”ku tks ckcklkgc us fy[kk ;s dksbZ xjhch fueZwYku dk dk;ZØe ugha gSA fjtosZ”ku xjhch fueZwYku djus ds fy, ugha cuk;kA vxj lqizhe dksVZ ds U;k;/kh”k dks okLro eas fiNM+s oxZ eas tks xjhc gS muds fy, T;knk lgkuqHkwfr gS rks lqizhe dksVZ ds ttksa iz/kkuea=h dks Iykfuax deh”ku dks ekbZukDl deh”ku dks  ikVhZ cukdj mudks vius ctV esa xjhch fuewwZYku esa ctV vkoafVr djus dk funsZ”k nsrh rks ;g ekuk tk ldrk gS dh lqizhe dksVZ ds ttkas dks fiNM+h tkfr ds xjhckas ds izfr lgkuqHkwfr gSA exj lqizhe dksVZ ds ttks us ,slk ugha fd;k mUgksasus fjtosZ”ku eas bdksukfed ØkbVsfj;k bUlVwV fd;kA ;s fy[kus dk vf/kdkj mudks ugha gS lafo/kku us mudks fy[kus dk vf/kdkj ugha fn;k gSA lafo/kku fy[kus dk vf/kdkj laln ds fof/k eaMy dks gS U;k;ikfydk dks ughaA eSa vkidks crkuk pkgrk gw¡ fd ckck lkgc us fy[kk fd mu yksxksa dks izeks”ku esa vkj{k.k nsuk pkfg, ftu yksxksa dks iz”kklu eas iz;kIr izfrfuf/k ugha gSA ;g fy[kh gqbZ ckr gSA lafo/kku eas tks fy[kk gS mldks ekudj lqizhe dksVZ us fu.kZ; ugha fn;k lqizhe dksVZ us euekuh djds ,slk fd;kA rks lqizhe dksVZ dks euekuh djus dk dksbZ vf/kdkj ugha gSA vkSj vxj lqizhe dksVZ euekuh rjhds ls fu.kZ; djuk pkgrh gS rks gesas ,sls fu.kZ; eatwj ugha gSA tks fu.kZ; lafo/kku ds fojks/k eas gksxs ,sls dksbZ Hkh fu.kZ; geas eatwj ugha gSA

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1995 esa Hkkjr ljdkj us lafo/kku la”kks/ku djds ,llh vkSj ,lVh ds yksxksa dks fjtosZ”ku bu izeks”ku fn;kA vkSj nsrs oDr ;s /;ku j[kk fd vkschlh dks fjtosZ”ku bu izeks”ku ugh feyuk pkfg;s ;fn ,slk gksrk rks fjtosZ”ku ds eqÌs ij ,llh ,lVh dk /kqzohdj.k gksxk vkSj fjtosZ”ku bu izeks”ku ds eqÌs ij ,llh ,lVh vkSj vkschlh ds chp >xM+k gksxkA dsoy mUgkssaus ,slk gkbiksfFkfll gh fd;kA cfYd og ckr ,d ne lkeus vk xbZ ek;korh olsZt eqyk;e flag TkSlk mUgksaus Iyku cuk;k Fkk og lkeus vk xbZ ek;k olsZt eqyk;e flag dh yM+kbZ gS ;s yM+kbZ ,llh vkSj ,lVh vkSj vnj cSdoMZ dh tks yM+kbZ gS blls D;k gqvk tks /kqzohdj.k dk tks ekeyk Fkk og eaMy deh”ku dk ekeyk Fkk mldks rksM+us esa czkã.k dke;kc gks x;kA bl rS;kjh ds ekSds ij ;s ckr eSa vki yksxksas dks le>k jgk  gw¡A tqfMfl;jh ds yksxksa dks tqfMfl;y fu.kZ; nsuk pkfg;s Fkk tqfMl;jh us tqfM;fl;y fu.kZ; ugha fn;k cfYd tqfMfl;jh us iksfYkfVDl fu.kZ; fn;kA tqfMfl;jh dk dke jktuhfr djuk ugha gSA tc czkã.kksa dh jktuhfr ikfVZ;ksa ds usrk detksj iM+ x;s rks czkã.kksa us rks jktuhfrd djus dk Bsdk lqizhe dksVZ ds usrk vius gkFk esa fy;kA vHkh vHkh tfLVl fjVk;MZ tfLVl dikfM+;k tc phQ tfLVl FksA rks mUgksaus fnYyh esa fof/k lEEksyu ds nkSjku mles mUgksaus igyk eqÌk mBk;k fd U;k;/kh”kksa dks lafo/kku ds nk;js esa jgdj QSlyk nsuk pkfg;sA tks ckr eSa dg jgk gww¡  cfYd lqizhe dksVZ dk phQ tfLVl Hkh dg jgk gSA rks bl rjg lqizhe dksVZ us jktuhfrd fMlhtu fn;k rkfd vkschlh dk /kqzohdj.k jksdk tk; rks ek;ukWfjVh vius vki :d tkrh gSA ;gh vki yksxksa dks le>kuk pkgrk gw¡ fd blfy, U;k;ikfydk us Iyku cukdj tqfMfl;y fMlhtu nsus ds ctk;] jktuhfrd fMlhtu nsus dk dke fd;k ;gh ckrsa vki yksxksa dks crkuk pkgrk gw¡ vki yksx lksprs gksaxs fd ;s lqizhe dksVZ ds jktuhfrd dk ekeyk gedks D;ksa crk jgsa ;g blfy, crk;k tk jgk gS D;ksafd ge yksx ;g ckr lM+d ij fuiVkuk pkgrsa gSA tks yksx lafo/kku ds nk;js esa dk;Z ugha djuk pkgrs gSa eSa mu ttksa dks psrkouh nsuk pkgrk gw¡ fd vesfjdk esa ykal ,tsfyal esa ,d OgkbV ds dkj ds uhps ,d CySd eSu nc dj ej x;k FkkA dksVZ esa dsl pyh tt OgkbV Fkk OgkbV tt us funksZ’k NksM+ fn;kA funkZs’k NksM+us ds nwljs fnu [kcj vkbZ fd tks ykal ,stsfyl ds dkys yksx Fks os lkjs ds lkjs lM+dksa ij mrj vk;s vkSj lM+dksa ij mrj vkus ds ckn os yksx tt ds ?kjksa dks vkx  yxk nhA vxj Hkkjr ds lqizhe dksVZ ds ?kjksa dks tykuk t:jh gS rks gedks Hkh ,slk djuk iM+sxkA eSa ,slk ugha pkgrkA exj eSa mudks psrkouh nsdj lko/kku djuk pkgrk gw¡ fd ykal ,stsfyl esa tks ?kVuk gqvk og Hkkjr esa ugha gksuk pkfg;s] exj og ,slk djkuk pkgrs gSa] rks ge djsaxasA vxj ,slk mudks djus ls gh mudks vdy vk;sxh rks gedks ,slk djuk gksxkA

lkfFk;ksa vkus okys le; esa lcls igys gEk yksxkas dks T;qfMfl;jh dk eqÌk lcls igys uEcj ysuk gksxkA ge yksx mlh dh rS;kjh dj jgsa gSA D;ksafd lafo/kku gekjs lEkFkZu esa gSa vkSj U;k;ikfydk gekjs fojks/k esa gSA blfy, U;k;ikfydk gekjs vf/kdkjksa dks Nhuus dk dke dj jgh gSA tcfd U;k;ikfydk dks U;k; nsus dk dke djuk pkfg;sA ysfdu og U;k; nsus dk dke ugha dj jgh gSA lkfFk;ksa ;s tks fu.kZ; fjtosZ”ku bu izeks”ku dk gSA ;s fu.kZ; ;kstuk cukdj Iyku cukuk gksxkA gekjs yksxksa us gaxkek [kM+k djds lafo/kku lalks/ku djok;kA lafo/ku lalks/ku 1995 esa gqvkA gksus ds ckn esa ,e ukxjktu uke dk ,d lkmFk bafM;u czkã.k lqizhe dksVZ esa x;k] ;g dgdj x;k fd lqizhe dksVZ us fjtosZ”ku bu izeks”ku ds fojks/k esa QSlyk fn;k Fkk vkSj ,slh fLFkfr esa Hkkjr ljdkj dks lafo/kku lalks/ku djus dk vf/kdkj ugha gSA ;s eqÌk ysdj ukxjktu uked dk czkã.k lqizhe dksVZ esa x;kA lqizhe dksVZ us 19-10-2006 dks lqizhe dksVZ us bls laoS/kkfud ?kksf’kr dj fn;kA 1995 esa fjtosZ”ku bu izeks”ku nsus ds fy, tks lafo/kku lalks/ku gqvk oks 11 lky ckn bls laoS/kkfud ?kksf’kr dj fn;k x;k bldk eryc gS 11 lky rd fjtosZ”ku bu izeks”ku dk gekjk tks vf/kdkj gS og jksd dj j[kkA leFkZu esa fy;k jksd dj Hkh j[kk ;g cnek”kh ge yksxksa dks le>uk gksxk] tkuuk gksxk 2006 dks tc ;g fu.kZ; fn;kA mlds ckn esa ek;korh ds }kjk fjtosZ”ku bu izeks”ku ds fy, 17-10-2007 dks “kklukns”k fudkyk x;k vkSj “kklukns”k fudkyus ds ckn vkSj fudkyrs oDr ek;korh us D;k fd;k vkSj 2001 dh tks lkeftd U;k; lfefr dk fjiksVZ Fkh ftls yxk;k ¼2001 dk½ vkSj blh ckr dks ysdj mRrj izns”k dk ;s czkã.k bykgkckn gkbZ dksVZ esa x;kA

bYkkgkckn gkbZ dksVZ esa 4 tuojh 2011 dk fu.kZ; fn;k ek;korh dk “kklukns”k jÌ fd;kA jÌ djus dk vkns”k nsus ds ckn mlds mlh ds uhps fy[kk ek;korh pkgs rks fjtosZ”ku bu izeks”ku ns ldrh gSA lkekftd U;k; lfefr ij jksd yxk;k bl otg ls jÌ dj fn;k vkSj ek;korh ljdkj pkgs rks fjtos”ku bu izeks”ku nss ldrh gSA tks vkns”k lq/kkjdj vkSj lqizhe dksVZ us tks rhu “krsZ yxk;h gSA fjdosZM bu iztsUVs”ku] dk;Z{kerk] cSdoMZusl ;s rhu “krksZ dk vuqikyu djrs gq, ;fn jkT; ljdkj nwljk vkns”k fudkyrh gS ,slk fudkyus dk mudks vf/kdkj gS vkSj mudks fjtosZ”ku bu izeks”ku ns ldrh gS vkSj bykgkckn gkbZ dksVZ us dgk] D;ksa dgk D;ksafd mUgsa ;g lqizhe dksVZ us fu.kZ; fn;k gSA blfy, ge bl fu.kZ; ds fojks/k esa fu.kZ; ugha ns jgsa gSA lqizhe dksVZ us lafo/kku lalks/ku fjtosZ”ku bu izeks”ku dks tk;t Bgjk;k gS blfy, ge fjtosZ”ku bu izeks”ku dks vlaoS/kkfud ?kksf’kr ugha dj jgsa gSA ge dsoy ek;korh dk vkns”k jÌ dj jgsa gSA D;ksa jÌ dj jgsa gSA 2007 dks vkns”k fudkyk] 2001 dks lkekftd U;k; lfefr dks vk/kkj cuk;kA tcfd mls ubZ lwph ds vk/kkj ij rqyuk dj ubZ fjiksVZ cukuh pkfg, Fkh tks ugha cukbZA blhfy, ek;korh ds “kklukns”k dks jÌ dj fn;kA

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ek;korh dks oksV ugha feykA oksV u feyus ls ek;korh dks ,glkl gqvk fd esjk tks csfld oksV gSA og ukjkt gks x;k gSA blfy, ek;korh us Iyku cuk;k fd ;g tks esjk csfld oksV gS fQj ls okil vkuk pkfg;sA rks D;k gqvk ek;korh us fo/kku ifj’kn dh lnL;rk dks [kkfjt dj nh vkSj jkT; lHkk dh lnL;rk Lohdkj dj yhA Lohdkj djus ds ckn ek;korh jkT; lHkk esa xbZA jkT; lHkk esa tkus ds ckn mlus lkspk tks yksx eq>ls esjs yksx ukjkt gks x;s Fks mudks fQj ls ykuk gksxkA vkSj fQj ls okil ykus ds fy, ek;korh us jkT; lHkk esa gaxkek [kM+k dj fn;kA mRrj izns”k ds yksxksa us rks t:j ns[kk gksxkA gaxkek [kM+k djus ds ckn esa dsUnz ljdkj dks yxk fd xqtjkr esa es?kky; esa vkSj e/; izns”k esa fnlEcj ds pquko esa ;fn ek;korh bu yksxksa ls mRrj izns”k esa ykHk ysuk pkgrh gS rks ek;korh es?kky;] xqtjkr] vkSj e/; izns”k esa rks pquko yM+us okyh ugha vkSj yM+sxh Hkh rks mldk dksbZ laxBukRed vk/kkj ugha gSA ;fn ge Hkh bldk ykHk ysuk pkgrs gSa rks gedks Hkh tYn gh esa lafo/kku lalks/ku dk eqÌk jkT; lHkk esas mifLFkfr dj nsuk pkfg;s] vkSj bldk Qk;nk ek;korh ds lkFk&lkFk dkaxzsl dks Hkh feyuk pkfg;sA blds fy, loZnyh; fefVax iz/kkuea=h us cqyk;hA loZnyh; cqykus ds ckn esa dkaxzsl ds tsc esa jgus okys tks vuqlwfpr tkfr vkSj tutkfr ds yksx j[kSy ¼gka esa gka feykus okys½ tks egkla?k pykus okys nsoh laxBu cgqr lkjs :ds gSaA mudks /khjs ls cksy fn;k fd yk[kksa dh HkhM+ esa ysdj vkvksa vkSj muds lkFk ;s Hkk’k.k djksa] fd ;fn dsUnz ljdkj lafo/kku lalks/ku dj nsa rks ge yksx 2014 ds pquko esa mudk izpkj&izlkj djsaxs nsoh laxBu ds usrk Fks] os yksx ogka ij dbZ yksxksa dks bdV~Bk fd;s vkSj ogka ij ?kksf’kr dj fn;k fd ge yksx 2014 esa dkaxzsl ds pquko esa izpkj djsaxsA ;s ckr 15 fnu igys gh mM+hlk esa crk fn;kA ckn esa fdlh us Qksu djds dgk esJke th vki crk jgsa Fks ,slk dksbZ Hkk’k.k gks jgk FkkA eSus dgk cqjcd! 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rhljk eqÌk gS mRRkj izns”k lektoknh ikVhZ pquko ds nkSjku eqlyekuksa dks 18 izfr”kr vkj{k.k nsus dh ckr dgh Fkh] ge bldk leFkZu djrs gSa vkSj eqyk;e flag dks ;g ckr eSa vPNh rjg ls tkurk gw¡ og tks Hkh vk”oklu nsrs gSa mldk og ikyu djrs gSA mldh [kkfl;r gSA ;s tks mudk lR;oknh pfj= gSa eSa muls vuqjks/k djrk gw¡ ;s tks eqlyekuksa dk 18 izfr”kr gS mudksa og nsa nasA ge mldk leFkZu djrs gSaA

pkSFkk eqÌk gS tkfr vk/kkfjr fxurh] vkSj vkschlh dh tkfr vk/kkfjr fxurh blds lkFk dsUnz ljdkj us /kks[kk/kM+h dh vkSj mRrj izns”k dk eqf[k;k vkschlh gSA rks vkschlh dh /kks[kk/kM+h dh fxurh u gks blds vk/kkj ij og [kcjnkjh djrk gS] vkSj og mRrj izns”k dk eqf[k;k gS tcfd og vius izns”k esa] tc dsUnz ljdkj us mudks iSlk fn;k ml iSls dk mi;ksx djds lgh lgh fxurh djokbZ tkuh pkfg,] vkSj bruk gh nwljs vksj ;wih, dh ljdkj dkaxzsl dh ljdkj gS os fxurh ds vkdM+s lgh bdV~Bk ugha dj jgsa gSA ogka ;s lgh vkadM+k bdV~Bk djsA rkfd lHkh yksxksa ds lkFk U;k; gks tk;sA

ikapok eqÌk gSA vfrfiNM+h tkfr;ksa dk oxhZdj.kAvkB jkT;ksa ds yksxksa dks vuqlwph tkfr cukdj mudks U;k; nsus dh dksf”k”k dh vxj dSMjkbZts”ku fd;k tkrk gS rks ;s czkã.kksa ds >kals esa ugha QaLksaxsA ;fn ugha fd;k x;k rks og czkã.k D;k dgsaxsA og vfrfiNM+h oxZ ds ?kjksa esa tk;saxs vkSj mudks muds izfr HkM+dk;saxs vkSj dgsaxs] lkjk vkj{k.k dqfeZ;ksa us ys fy;k] lkjk vkj{k.k ;kno us ys fy;k] lkjk vkj{k.k dgkjksa us ys fy;k] lkjk vkj{k.k yksuh us ys fy;kA ,slk izpkj djds vfr fiNM+h yksxksa dks czkã.k yksx vius >kals esa ysaxsA vkSj mudks bl rjg bLrseky djsaxsA blfy, eSa bl ckr dk leFkZu djrk gw¡ fd vfrfiNM+h tkfr;ksa dk dSMjjkbZts”ku vyx fd;k tk, ftllsA mudks U;k; Hkh feys vkSj os czkã.kksa ds czkã.kh dj.k ds >kals esa Hkh u QalsA vxj og czkã.kh dj.k ds >kals esa Qalrs gSa rks ;g lkjs ns”k dk lR;kuk”k dk dkj.k cusaxsA blfy, ge yksxksa dks lrdZ jgus dh t:jr gSA

6 uEcj dk tks eqÌk izcU/kd dk gS ek/;fed ,oa egkfo|ky;ksa esas iz/kkukpk;Z ds ,dy in dks [kRe djus ds lqizhe dksVZ vkSj jkT; ljdkj ds tks fu.kZ; gSaA ge mlds fojks/k esa gSA eSa bldk ,d lek/kku izLrqr djrk gw¡A lkjs izns”k esa VksVy iz/kkukpk;Z fdrus gS mldh ,d fyLV cuk;h tk;s] ,d dSVxjh cuk;h tk,A vkSj dSVsxjh esa 100 iz/kkukpk;Z gS rks 50 ,llh] ,lVh] vkschlh ds yksxksa dks fu/kkZfjr dj fn;k tk,A vU;Fkk ;s O;k[;k gS tks ,dy in gS ;g ykxw ugha gksxkA ;s vU;k; in dk ekeyk gS bldks lq/kkj fd;k tk ldrk gSA

lkroka eqÌk gS l= U;k;ky; esa vkSj mPPkre U;k;ky; ds ljdkjksa esa odhyksa dh fu;qfDr esa esokyky cuke jkT; ljdkj dsl ds eas ;s tks odhy gksrsa gS ljdkjh ;s ,EiykbZt ugha gksrsa gSA ;kfu ,EiykbZt yksxksa esa igys ls fjtosZ”ku bu izeks”ku ykxw gS] rks odhyksa dks Hkh blesa Hkh ykxw djus ls dksbZ ck/; ugha gSA blfy, fu.kZ; gksus ds ckotwn Hkh bls ykxw ugha fd;k tk jgk gSA ;s vU;k; djus okyh ckr gS blds fojks/k esa Hkh ge yksx vkanksyu dj jgsa gSA  ge yksxksa dks ;gka tks lkjs izns”k ls vk;sa gS ;s lkjs eqÌksa ds fy, ge yksx tu&tu esa fQj tkxj.k djuk gksxkA vkSj viSzy eghus esa iqu% nksckjk jSyh gksxh vxj vki yksx lM+dksa ij QSlys djuk pkgrsa gks rksA eSa bl ij ;dhu djrk gw¡A D;ksafd ;s yksx foosd cqf) dh ckrsa ugha ekurs] ;s U;k; dh ckrsa ugha ekurs gS ;s lafo/kku dh ckrsa ugha ekurs gSA blfy, lM+dksa ij gh mrjuk gksxk exj ftruh la[;k esa vki vk;sa gSA ;s dkQh la[;k gSA exj bruh la[;k esa tks “kkld oxZ gS mldks >qdkuk laHko ugha gSaA vkus okys le; esa dbZ yk[kksa dh la[;k esa ge yksxksa dks] jSyh djuh gksxh] vkSj vxj ge ,slk djrs gSa rks eSa ;dhu djrk gw¡ fd ge yksx] tks “kkld oxZ gS] vkSj ge tSlk pkgrs gSa] oSlk ge mudks djus ds fy, etcwj dj ldrs gSaA

fcgkj esa xzkeh.k pkSdhnkj pkSFkh Js.kh ds deZpkjh 90 esa cuk;s x;s gS xzkeh.k izlo nkf;;ksa dks 5000/- gtkj feyrk gS vkSj pkSFkh Js.kh ds pkSdhnkj dks 17000/- gtkj :i;s feyrk gS tcfd mRrj izns”k esa D;ksa ugha feyrk gSA ;g Hkh cgqr cM+k eqÌk gSa bldks Hkh vkus okysa le; esa ge mRrj izns”k esa Hkh mBk;saxsA blh ds lkFk eSa viuh ckr lekIr djrk gw¡A